पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१६२

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iयह सेहराज १४३ वो न देवोंनदन के थों ोतिन को सूल है ॥ कैधों चंदमंडल में भीम के गणेदन को बाल मत भ्रमर रहोई भ्रम भूल है । प्यारी तेरे सरबजुहाग भरे मु खपर वारियत तीनों लोक तिल के न यूल है 1 ६ ॥ चाँदी के चबूतरा मै बैटी चारु चंद्रमुखी जोतिन के जाल छविज्ञाल में बुरे पाँ । देवकीौंदन तैसी चाँदनी वुहात ऊमी आर्निंद बढ़त कोटि दुख हू दुरे पर्चे ॥ रजत चंदोघा स्वेत हीरा पुहे आसपास कि क्षति झघा सोने रूप के डेरे पर । होती जोत विपल उज्यारे जल भरे टूटें चारो ओर मोती से ऊ हारे बिखेरे प॥ ७ ॥ गुड़हर गेंद गुलखो सी घिसाल छधि लाल कचनार सी अनार सम मानी है । सूरजमुखी सी गुपचा सी जपा सी सोहै देवकीनंदन गुलेलाला सम जानी है ॥ चंपा सी चमेली सी जुही सी सोनजूहीसम सेवती गुलाब गुलदाउदी प्रमानी है। कलपतरोवर से फूल नंदल।ल चारो ओर ललना लता सी लपटानी है ॥ : ॥ बयाई लुधि हार चारु चंपककल के चारि दीवे को विचरि गई लालन निहाई । देवकीनंदन पहिरावत मगन भई ठ गन ठगी सी ठाढ़ी वाही टर ही ठई।॥ स्याम कर गही सेई बाके सुधि रही भई मूरछा नई सी हरि फेरि उर में लई । कीनी केति जत भरि बनमाली छाईं केर कर । अंक ताल कर मालिनि कई गई ॥ ॥ ३००देव कवि काजिह्वा स्वामी बनारसी ( विनयाम्मृत ) पद जग मंगल सिय जू के पद हैं । जस तिरकोन जैत्र मंगल के आस तरवन के कद हैं । मलईि गलाघर्ति जे तन मन के जिन की अटक विरद हैं। मंगल हू के मंगल हरि ज: सदा बसे ये हद हैं । , हैं