पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४४
शिवसिंहसरोज

१४४ शिवसिंहसरोज ऊपर गौर राजहंसन से -मोती नखर अदद हैं । पदुम मनहूं जागी मानस के मधुसिंह विगलित पद हैं । काल सरप के डसे जीव ये विषय निरत बड़ बंद हैं । देव सुधा सम विनय अग्रुत ही संजीवन औपद हैं ॥ १ ॥ ३०१. दूसह त्रिवेदी बनपुरावाले ( कविडुलकंठभरण ) आये री पीव परोसिनि के यु भई मुनि मो मन मोदई है । हाँ कवि दूलह बाकी दसा लखि जात जरी तन लाल तई है ॥ मोहैिं वफाई सबै घर की ये कहीं बहू बेदन कौन भई है । और के आनैद आनंद होत जगे जिय की यह रीति नई है । १ ॥ आली फूलबाग में अरेखा अनुराग भरी देखे तहत ऐसी भाँति चरित बिहारी के कहै कवि दुलह कहे न वनै मो मैं कलू लह लहे लोचन ललित सुकुमारी के ॥ फूले अंगअंग बाढे उरज उतंग फैले छबि के तरंग मुख चंद उनियारी के । ज्यों ज्यों लेत पिय परनारी भरि गोद त्यों त्यों हिये होत आानद प्रमोद मान- प्यारी के ॥ २ ॥ सुन्दर सुबेस मध्य यूठी में समांत जाको प्रगटो न गात बेस बंदन मॅारी है । कहै कवि दुलह घु रमेनी निंत्राज औ छटैंक भरी तौल मानों सॉचे कीसी बारी है ॥ पेटी है नरम कर लीजिये बिंद गति निंट नवेली मै समर सरखारी है । री गुन मान गोसे गो से सीं मिलेगी संतान की कमान के समान मानप्यारी है I। ३ ॥ पढ़ी परअंक पर कमल कनकलता लागे। है कनक गिरि बनक विसाल है । कहै कवि दुलह ड यंगन स हित तामें तरुन तमाल छाब झलत जाल है ॥ कमल के नाल पर राजर्त जुगल रंभा रंभा दें कमल जुगसोभित सनाल है । कमल मै कुरबिंद कुरबिंद पर चंद चंद . चहे चारु लोलत मराल है'॥ ४ ॥ n . । " o ।