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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७२

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शिवासिंहसरोज १५३ थालम महावर्दी धोरे मुख होत धराधीसन के धाक मुनि धुव धाम शूरि सर्दी धुरेनें सुरलोक सैं ॥ दिप दल चलें दर्दे दिग्गज दिगंतन में दौरे दरवरक करेरे दरिया इलै । फनी फन फूटें फुफ रत याँ रुधिरफुही रंग ज्ों फुहार जावकानि उरखे चले ॥ २ ॥ ३१६ . धोकलाइ बैंस न्यावाँवाले ( रमलप्रश्न ) दोहा-गुरु गनपति रघुपति सिया, चरनकमल उर यानि । रमलप्रश्न निज मति जथा, धौंकलसिंह वखानि 1१॥ प्रश्न चतुर पट उमा , वरने सम् समीति । सो अब भाषा में कहींकरि दोहा की रीति ॥ २ ॥ ३१७धधे कवि ब्रजवासी पद तेरे मुख की निकई मोघे वरनि न जाई अंग भंग छवि ठाई। नयनन लगत सुहाई ऐसी रचि पचि विधि विधि के बनाई ॥ भौंइन की कुटिलाई नैनन अरुनताई नासिका मुवन वनीअधर सुधाई। धधे प्रभु के मन ऐसी भाई कप्त न कटु बनि आई और सोहैं। की सहें तेरि ये दुहाई ॥ १ । ॥ ३१८नरहरि कवि असनीवाले नाम नरहरि है प्रसंस सब लोग करें हंस हू से उज्ज्वल स- कल जग व्यापे हैं । गंगा के तीर ग्राम असनी गोपालपुर मन्दिर रोपालजी को करत मंत्र जापे हैं। ॥ कवि वादसाही मौज पावें यादसाही आज गावें यादसाही जाते अरिगन काँपे हैं । जब्बर गनीमन के तोरिये को गध्वर हैं हुमायूं के घघर अकव्वर के धागे हैं। १। । छछरों सर सर हंस न होत वाजि गजराज न घर पर। तरु तरु सुफर न होत नारि पतिव्रता न नर नर ॥ ग्रा