पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८४

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शिवसिंहसरोज १६५ ३४६नाथ (७ ) कवि ब्रजवासी सभीरे अचल कन्दरा बारि ने सदन फूल फल चारु हरिये .यमुन्धर बरस मेह लुटें न जल ज्यों पुडुप चुम्यहर नीर सारंग पुरंदर ॥ गरज खग भंवर नाद वाजे बहू इन्द्रबामा लसे याँ सुमन को धनुर्धर । पिया ले तड़ित साथ याँ स्याम घन नाथ सायन बनो के मदनबाग मुग्दर ॥ १ i ३४९. नरोत्तम कवि भोरही साँ वह कौन सी पाहुनी आई तिहारे ह। न्योति बुलाये । छोटी-सी छाती छवनि लौं वेनी नरोत्तम रूप की लुटि-सी पाये ॥ सारी हरी गुंगिया घनैनवेति की यूपत सो लहूँगा थिरकाये। कंज-सो आनन खंज ो नैनन नि इंगुर सो लाठिये ॥ १ ॥ ३४८नरोत्तमदास कवि ( सुदामचरित्र ) सीस पा न लैगाँ तन में पड़ जाने को बाहि वसं केहि ग्रामा। धोती फटी सी लवी डुपदी यक पाँय उपानह की नहिं सामा ॥ द्वार खड्रो द्विज दुर्बल जानि रविो चकि सो बसुधा आभिरामा । पूछत दीनदयाल को धाम वतावत अपना नाम सुदामा ॥ १ ॥ ३४६. नैथूक कवि होरी लगी अवही ते तुम इतरान लगे ऐसो जरि जाय ख्याल जामें लाज जायगी । परिहै जो रंग तो तिहारी सौं विगरि है। नई जरतारी ने सारी भरि जांयगी ॥ नैमुक निहारत हौ मूवी फेरि झारत ही गैयन चरैया हो. बलैया डरि जायगी । परिहै । गुलाल मेरी शखिन में लाल) नौ गोपाल यहि ब्रज मैं जयारों परि जायगी ॥ १ ॥ १ टूड़ियों तक । २ एक प्रकार का वन । ३ पगड़ी । वे जामा । ५ अनर्थ हो जायगा ।