पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१९३

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शिवसिंहसरोज

१७४ शिवसिंहसरोज छबीले बैल औरै छबि छठे गये ॥ औरै भाँति बिंगसमाज में आवाज होति अवै ऋतुराज के न आज दिन है गये ।, औरै रस औरै रीति औरै रग औरै रंग औरै तन औरै मन औरै बन है । गये । ३ ॥ लल में केलिन कछारन में इंजन में क्यारिन में कलित कलीन किलकत है । कहै पदमाकर पराग हू में पौन टू में पातिन में प्रिंकन पलसन पगंत है.॥ द्वार में दिसान में चुनी में देसदेसन में देखौ दीपेंदीपन में दिप्त दित है । बीचिन में ब्रज़ में मवेलिनमें बेलिन में घनन में बागेन में बगस्यो वसंत है ॥ ४ ॥ गुलगुली गिल, गलीचां हैं गुनीज़न हैं चाँदनी । चिके हैं चिरागन की माता हैं । कहै पदमाकर ढाँ गजक गिजा हैं सजी सेज हैं सुरा हैं औ पुरहिन के प्याला हैं ॥ सिसिर के सीत को न ब्यात कसाला तिन्हैं जिनके अधीन एते उदितें मसाला हैं। तांन छूकताला हैं ब्रूिनोद के रसाला :हैं सुबाला हैं. दुसाला हैं बिसाला . चित्रसाला हैं ॥ ५ ॥ ए संग घाइ नंदलाल औ; गुलाल दोऊ खंगन गये री उर आएँद मेरे नहीं । घोड़े धोइ हारी पदमाकर तिहारी सौह अब तो उषाइ कछु चित्त में चहे नहीं । कासां कहाँ कैसी करत से .धी धीर हार्य -कोऊं तों वता ज़ा सों दद बढ़ नहीं। एरी मेरी धीर जैसेतैसे इंन ऑखिन ने कवि अबीर मै अहीर को कर नहीं ॥ ६ ॥ ३७३.परतापलाहि कादि (-काव्यच्लिस ) चंद्रन टि गयो कुचलुभनजात रही अधरन की लाली । अंजन घोइ गयो दृग खंजन देखि परै मुख की न-बहाली ॥ कंपित गातसतंकित अंकित सैदे के ख़ुद लम्र छबिसाली। कीनो अ मन में निरास पी पापी के पास गई किन आती 1१। १ पाक्षिसह ।२ टे।३ डीए-दीघ्र : ४ कहे हुए ५ पलीना। C a N