पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवसिहसरे १७७ बंा सी छूटी हाक फटिक नोट चटक फटी सी है ॥ कच कुच दुविच विचित्राकृतिशत व वी तट पाटी घट तट सैं पटी सी है।विरह पुत्र द्ध भिय तो प्रदोष पाइ पन्नगी पिनाकीपद पूजि पलटी सी है ॥ ८ ॥ अलबेली अली वे धरे भुज को अँगरानी सँभाई चितं त्रिवली। सरक्यो सिर चीर गियो कटि वें पजनेस प्रभा की जगी अवली ॥ परचे जड़ी वाल की बेनी बँधी झलके मुकृताली कपोलथली । विड के रथ चक्रित चक्र मनो कल केंचुली नागिनि छोड़ि चली ॥ई ॥ बैठी विधुकीरति कृसोदरी दीची बीच खींचि पी निसक पर जैक पर रौ गयो । जन सुजान कधि लपटि लला के गरे झष्टि युसु नीची कर जंघन सम् गयो ॥ गोरो गोरो भोरो पुख सोहै रति भीत पीत अंतसमें रत है यंत सो र गयो । मानो पोखराज .ते पिरोजा भयो मानिक भो मानिक भये ही नीलमनि नग है। गयो ॥ १० ॥ स्पाई केलिभवन भुराइ भोरी भामिनी को फूलगंध के फरस कीनो पौनरुख ते। कंचनकलित कृसतनरतिरमनीय तीनी गति पीतम प्रसूनसेज सुख ते ॥ कवि पजनेस अंक भरत हा के हरे सीवी के समेटि साँस नीवी दाधि दुख ते। आदि करि उछरि सचोट पचगीसी ऐंठ उमष्ठि अरी री में मरी री कंही मुख ते ॥ ११ ॥ कवि पजनेस मनमथ के सघन पर खुल सुलत भाल वृषभाननंदिनी । सुन दें सुधारयो विधि बुध बिड अंक घंक दसगुनी दीपति प्रकासी जगदिनी ॥ सेदकन मध्य दीढि रच्छक डिडौना ता दें छूटी लट ढलत कला जनु कलिंदिनी । मुखऑरबिंद ते समेटि मकरंद6द मान निज नंदनि चुनावति महिलदिनीi १२॥ ३७५. परमेश्श कवि प्राचीन ( १ ) मायती जाती किती वर्ट पूजन बाल वाकाहू के संग सौ नदि i ठाढो रहै उत लालची लाल सनेह सों यां से जात बने नदि ॥