सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१८२
शिवसिंहसरोज

१८२ शिवासिंहसरोज ३८३. प्रेमी यमन कचि ( अनेकार्थनाममाला-रामशब्दार्थ ) ईस नभ आस म्ग मेरु धनु अरजुन संगी देव सिंह अन्य सिंह गुच्छ आनिये । दुन्दुभी घर सठ अग्नि सुर सस अस्व जम के कौतुक कला गीत चित्र ठानिये ॥ जीव बासुदेव रिस गरुड़ गनेस काल त्रिबली औ मोती माल जज़न्तु जानिये । गजगति हंसगति नरगति त्रिया नदी सित सीतगुरु ऊँट रहिमान-मांनिये ॥. १ ॥ ३८४. परमानन्द लल्लापौराणिक, आजयगढ़वाली सम्भुड से लुढार तालफत से उदार बीजेपूर से अपूरख कठोरता टूरत हैं । कंजलिका से नारिकेरफलिंका से गुच्छ फूलन के भासे कैदुकाँ से उघरत हैं ॥ पर्मानन्द गहब गुराई पीनताई भूरे खासे काम नट के बट से सुधरत हैं । रोज रोज बाढ़त उरोज कामिनी के जतरूप के से कुम्भ गजकुम्भनिदरत हैं ॥ १ ॥ ३८५ , प्राणनाथ बैसवारे के सैबत ब्योम नराच बसुमही महिब्रू ड मास । मुक्त प्रच्छ तिथि नवम् िलिखि, चकाब्यूह इतिहासं ॥ १ ॥ ‘मोदकछन्द . नमामि स्यामसुंदर । गुमनकंधिमंदिर ॥ करा का काल के। विरंचि लोकपाल के॥ अभागनागकेसरी । अपूत पूतना तरी ॥ e e छन्द पांडब प्रबोधि- पुरारि करि द्वारावती. बिचत सही .! कवि प्रान किमि स्लीपतिकथा नईि जात पशुपति सों कही ॥ गोपाललालचरित्र पावन कहईि पुनर्ति जे गावहीं । जन प्राननाथ सनाथ ने फैल चार मंजुल पावृहीं ॥ १ . १ नगाड़े ।२ । ३ गेंद ४ सुवर्ण ।५ मंगल वार ६ कार्तिक का महीना । ७ चार फल-धर्म, अर्थकाममोक्ष ।