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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२०२

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शिवसिंहूसरोज १८३ ३८६, पदमेश कवि छर्ष ब्रह्म विष्णु सिव लिंग पद्म अस्जद सुहावन । वामन मीन वराह अग्नि पुनि रम पावन ॥ नारद गरुड़ भविष्य ब्रह्मवैवर्तक नीको। माकंडे ब्रह्मांड। भागवत सबको टीको ॥ पदमेस पुरान अठारहौ समुझि िलेतु बुधिमान सब। सब मुक्निमुक्तिदातार ये गाते हैं पण्डित सुकवि.॥ १ ॥ आयो नामखास में तमाम उमराय देखें कहीं खोजा काम को कक बात मान में। ताही समैं ताही के सर िसंग तेग हिन्दी सहमत भागे जेते तुरुक विद्यान में ॥ पीरन मनाई मीर मीरन सर्षों क, केदू वीर के सिधारे महिट रहे न अठान में । राजा करनेरा के करे पदमेस वीर तेरे कर कस्किला राखी मुगलान में ॥ २ ॥ ३८७. पूपी कवि मैनपुरीससीपबासी फूले अनार न कि सुक-डारम देखत मोद महा उर माँचे । माधुरीझौरन गाँव के बौरन भौंरन के गन मंत्र से बाँचे ॥ लागि रही विरहीजन के कचनारन बीच अचानक आँखें । साँचे हुँकारै पुकारे पुखी कहि नावें बनेंगी वसंत की पाँचे ॥ १ ॥ संगमरमर की सुधारी सरवरपरि फूले तघर सघ बिपिन : बायो है । ठाढ़ी तहाँ पारी संग विहरि बिहारी पुखी रैनि उजियारी इत बदन उज्यायो है ॥ कान को तयौना छुष्टि परसि पयोधर्ग को धरनी परत कनी झरि झनकायों है । रोस भरपूर जिय जानि के कलंकी कुर मानौचन्द्र चन्द चूर करि डायो है। २॥ पीनसँवारो प्रवीन मिलें तो कहाँ लौं सुगंधी सुगंध लेंघावै । १ तालाब का किनारा २ स्तन । शिवं । ४ पीनल पक रोगका नाम है।