पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२०५

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शिवसिंहसरोज

१८६ शिवसिंहसरोंजे .& अतिरोचक करतबके। बिर्दीमकें दलदू बिराजे हेमसंपुट में राजत अन बहु जन के नसीब के ॥ भावती के अधर पियूष के धरनहार कहै पलूराम रसदानी मानपीव के । बिंबन के बाद अनुराग के से मतिबिंब रजोगुननायक कि बंधु बंधुजीब के ॥ १ ॥ ३६६. परिम कवि एक समै सब गोपकुमारि में खेलत आघिक राति बिहानी । हाँ हूँ गई दुरिख को जहाँ भु दुरयो तहाँ मोहन हो अभिमानी। ये पतिराम लखे जब ते तब ते पल एक नहीं हहरानी । भागे अंधा ते गई मगरी याँ घट से नो बिजुरी विदुकानी 1१॥ ३६७प्रह्लाद कवि आज आली माथे ते 8 बंदी गिरे बारबार मुख पर मोतिन की लरी लरकति है । धरत ही पग कील रे की निकस जाति जम तष गाँठि जूरे हू की टरकति है ॥ जानि ना परत पहलाद परदेस पिय संससि ड्रोजन साँ आँगी दरकंति है.। तनी तरकति कर जूरी चरकति अंग सारी सरकति औखि वाई फरति है ॥ १ ॥ ३६ पंडितप्रवीन ठाकुरप्रसाद मिश्र, पयासी के भांजे मुजदएड के प्रचएऊं चोट बाजे घर सुंदरी समेत सौवें मन्द्र की कन्दरी । मुगल पठान सेख सैयद असेर्ष घीर आावत हजारन बजार के से चौधरी ॥ पण्डितमबीन कहैमानसिंह भूपति कमान वै अरोपंत याँ काम की सी कैबरी । सिंह के ससेटे गण बाज के लपेटे लवा तैसे भा िभूतल चकत्तन की चौकरी ॥ १॥ पावस अमावस की अधिक धरी राति साठ है. मंज्ासे मेरी नौंद नदान छ । सुनो सुखमैौन है परोस को भरोस कौन पाहरू न जागत पुकार परे कान जू ॥ पण्डितबीन प्यारो इसत बिदेस १ । २-अनारा ३ सब ।' & चढ़ाते हैं मैं बाहर गई।