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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२०६

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शिवासिंहसरोज १८७ पति कौन को देस अष रसिकपुजान जू । एहो ब्रजराजराज सुनि अरज मेरी आजु बसि जैसे बसि जैये तौ विहान सू ॥ २॥ आयो ऋतुराज आज देखत बने री आती छायो महामोद सो प्रमोद वन भूमि धूमि । नाचत मयूर मद उन्मद मयूनी को मधुर मनोज सुख चाहें मुख भूमि चूमि ॥ पण्डितालीन मधुरौपट मधुप पुंज कुंजन में मंजरी को लेत रस लूमि पूमि । हेली पौन प्रेरित नवेली सी झूमनवेल फैली फूलडोलानि में झूल रही भूमि ऋषि ॥ ३ ॥ जादूगर साँत्रो न जानी कस जादू करी पंडित प्रवीन हवें विकानी नानयारे पै । आँगन सीं जात आटा नष्ट की बटा सी गैल थैल की छटा सी छवि देखत हों द्वारे वे ॥ फ्रंट के छट चोट लानी इन नैनन में ऐसी लोटपोट भई पीतपटवारे है । अई पनिघट पे न घर की न घाट की हौं नोखो री नवल नट अटको हमारे से ॥ ४ ॥ उझकि ाय नेक लचकि ल चाय ले* रसना कसकि दावि दसन आमोल जू । बद न विसाल ख सेद को ललित जाल डोलत कलित कच कुण्डल कपोल जू । पीडितत्रीन हार हलत उरोजभार चंचल है अंचल को उपर निचोटें व । धन्य धन्य गेंद तोहेिं गहते गुलाबकर खेलत नवेली करि केलि कोकलोल जू ॥ ५ ॥ द्वार दृढ़ किल्ली देत दिल्ली को जनाबआली रूस की रियासति मसि के त्रसत है । काबुल औ जाबुल जनाब में न तालू रही अत्री अरब्धिन पै काठी ना कसत है ॥ पण्डितमचीन हजंगी मै फिरंगी लोग गाड़े गड्धारिम को राहु सो ग्रसत है। आकिल अकूतवर महाराज मानसिंह वाजे बादसाहू तेरी वाँह लौं वसत है ॥ ६ ॥ बैली को वितान मल्ली. दल को बिछौना मंजु महल निकुंज है प्रमोद बनराज को । भारी १ सुबह ।२ मकरंद-लोभी ।३कमरा ४ वन ।'५बेलौका थैबोवा। A n "