पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२०९

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शिवसिंहसरोज

१९० शिवसिंहसरोज़ ४०१ पंचम कवि प्राचीन ( १) कीबे को समान mदि देखे मड आन ये निदान दान बूझ में न कोऊ ठहरात हैं । पंचम मचएड झजदएड के बखान सुनि भागिरी को पच्छी लौं पठान थहरात हैं ॥ संका मानि काँपत अमीर दिल्ली बाले जब चंपत्ति के नंद के नगारे बहरात हैं। चहूं ओर फ़ता के वर्कता दल ऊपर कु छत के प्रताप के पता फहरात हैं ॥ १ ॥ ४०२, पंचम कवि बद्रीजन डलमऊवाले (२ ) उज्ज्वल उदारताई गावत पुराने लोग जोग करिबे को जोगी बसत महिन्द्र है । रन्त्रांकर की फलिंद देत ना आर राद्वयो भाष्यो पार पावत न महिमा फनिन्द्र है ॥ पंचम मुकधि धरा धरे उपकार हेत चित कथा राम की बसंत कहा इन्द्र है । सम् के बसे ते देवगन के लसे 'ते अंजु सिवगिरि सोहै गिरिगन को गिरिन्द्र है ॥ १ ॥ ४०३. पंचम कवि अजयगढ़वाले ३) पण्डित कठिन्दन के बुन्द बैठे एक और एक रे बाघ से बुंदेला हैं अपार में । राना राव और कछवाहे हाड़ा एक और एक ओर कऽली पवार परिहार में ॥ एक और पायक धंधेरे औ बघेले कौन सहै भटफेरे कहा कहाँ निरधार में । पंचम गुमानसिंह हिन्द के पनाह ठकुराइसि को टीको यार तेरे दरख़ार में ॥ १ ॥ ४०४, प्रधान केशवराय कवि ( शालिहोत्र ) दुहूँ कानन बिच भौंरी देखो । अहिलुसली ता नाम बिसेखो ॥ ४०५प्रधान कवि रोगिन कान सुनै जो कहूँ सहसा निज डील ही उठि घावें वे - जाइ कै ताहि भरोसो दे भूरि घु नारी निहारि के रोग मिलावें । देत सुधा सप ते रस हैं परदे पुख में परे मान जियावें। भाष प्रधान ये वैद सुजान जे कालहु के घर ते धरि लाबें ll १। १ यह अकबर के कुल की जाति थी ।