पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१०

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शिवसिंहसरोज १९१ ओक धतूर घमोइ भरे कॅखरी पुटकी जग बंद कहावै । जानें नहीं कह लच्छन रोग के सीत भये पर ब्रैड पियारी ॥ हीं । बर्दे महात्राठन सा गुन ताके प्रधान कर्ता लगि गावै । कुंसित बैदन की करनी यह बैतरनी गऊ रे घर आघे ॥ २ ॥ ४०६प्राणनाथ कवि चंद घिन रजनी सरोज विन सरवर ते घिन तुएँग मतंग धिना मदको। विन सुत सदन नितंविनी घु पति चिन विन धन धरम ति बिना पद को ॥ बिन हरिभजन जगत सोहै जन कौन नोन घिन भोजन विप बिना छर्दे को प्र।ननाथ सरस सभा न सोहै। कवि बिन बिष घिन वात म नगर घिना नद को ॥ १ ॥ ४०७पुडकर कवि जल जोर महां घनघोर घटा व ऊपर कोष पुरंदर को । कवि पुष्कर गोकुल गों सधे निरखें मुख श्रीमुरलीधर को ॥ घर में घरिषो धरनीधर को धक्यो न हियो धरनीधर को । कर लें जमुकाँकर को कर को करुनाकर को करुनाकर को ॥ १ ॥ ४०८० प्रसिद्ध कवि । गाजी खानखाना तेरे धौंसा की पुकार मुनि सुत ताज पति तजि भाजी चैरी बाल हैं । कटि लचकत वार भार ना सँभारि .जात परी विकराल जहें सघन तमाल हैं। ॥ कवि परसिद्ध तहाँ खगन खिझायो आन जल भरि भरि लेती गन विसाल हैं । बेनी बेंचें मोर सीसफुल को चकोर खैच मुकुता की. माल ऐंचि खैचत मराल हैं j १॥ तातो होत तन और सूख जात मुख-जोति। अंग अकुलात चित्त अधिक भंवरु है । रैयत ङसीरभौन लागत न १ मदार।२ मंझा। ३ हिस्सा लेना तय करता है । ४ निन्द्रित ५ शास्त्रा ६पत्ती ७ ससखाने में ।