शिवसिंहसराज - १ -
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ति के नीको पौन औला घनसार घनो चंदन अमितु है ॥ सीरहूं जतने याते की•हे हैं अनेक भाँति तापर तिहारी सौंह दुख ना घटतु है । जानत हाँ ब्याष्यो तोहैिं बरहा प्रसिद्ध आली, नायक है कोऊ, नाहीं ग्रीषम की ऋतु है ॥ २ ॥ ४०७. परमानंददास कवि पद परमेस्वरि देबी नि बंद - पावन देब गंगे । बामन-चरन-कमलनखजित सीतल बारि-तरंगे ॥ मज्जन पान करत से पानी त्रिबिध ताप दुख भंगे । तीरथराज प्रयाग प्रगट भो जब बनि जमुना बेनी संगे । भगीरथ राज सगरफुलतारन बालमकि जस गायो । तुष प्रताप हरिभक्त प्रेमरस जन परमानंद पायो ॥ १.॥ ४१०. पराग कवि रजतपहार घनसार मालत का हार छरपारावार गगधार धराये धरसों । सत्य सो सतोगुन सो सारदा सो सेकर सो सेख शुक्र शुक्ला सो सुधा सो पुरतरु स ॥ भनत पराग कामधेनु सो कुम- दिनी सो कज कुन्दपुल सो पुनीत पुन्य फर सो । कासीर चि- क्रम नरेस देसवैसन में तेरो जस राजत छबीलो छपांकर सो ॥ १ ॥ ४११. फेरन कवि अमल अनार अरविन्दन को वृन्दार बिम्बाफल विद्म नि हारि रहे तूलि यूलि । गेंदा औ गुलाब गुललाला गुलाबास आब जामें जीव जाव जपाको जात भूलि भूल ॥ फेरन फंवत तैसी पाँयन ललाई लोल इगुर भेरे से डोल उमड़त भू िइलि । चाँदनीसी चन्द्रमुखी देखौ बजेचन्द उठे चाँदनीं बिछना गुल चाँदनी-सी फूक्लि फूलि॥ १ ॥ यूहिन वियोग ग्इत्यागिन विभूति १ ठंडे । २ कैलाश । ३ क्षीरसागर। ४ महावर ।