शिवसिंहसरोज १९९ & . झ रहे से कहा ऊँचे भये जात हैं ॥ बुद्धिसेन राजन के निकट हमेत्र बसें ९ विलार कहा गुन अधिकात हैं। दूर ही गयद बाँधे र सुनवान ठाढ़े गज औौ गुनी के कहा मोल घटि जात हैं ॥ १ ॥ २७. बुद्धराज कवि, राघ बुद्ध हाढ़ा दीवाले कीनो तुम मान, मैं फियो है कब मान, अबकी सनमान, अप- मान लीनो कब मैं । प्यारी हैसि वोलु, और वोलें कैसे बुद्धिराज, सि ले बोलु सि बोलिहाँ अव में ॥ दृग करि सैंहैिं, को रिहैं करि जानत है, अब करि हैं; आनर्सकीने कब मैं । ली कैरि शंक, जहॉ आाये भरि अंक हैंहैं, न काहू भरि शंक) उर बैंक देखे आंव में ॥ १ ॥ ऐसी ना करी है काहू आजु लौं अनैसी जैसी सैयद करी है ये कलंक कादि चखेंगे । दूजे को नगाड़े बाजे दिल्ली में दिलील आगे हम सुनि भागें तो कथिंद कहा पढ़ेंगे ॥ कहै राव बुद्ध हमें करने हैं बुद्ध खामिधर्म में प्रबुद्ध जे जहान जस महेंगे । हाड़ कहा कहा हारि करि कहै ताते झारि समसेर आ रारि करि कहेंगे ॥ २ ॥ ४२८ वृंदावन कवि औज करि आपनो पयोज पृथिवी मैं रोज रोज हू सरोजन के ज हरित्रो करें । बारिनिधि बसि के कपाली सीस लाति के मच्छिना सुमेरु आसपास भरिवो करें |छोटो छोटो है फेरि पोड़स कला लॉ बड़े नीके 6द अमल अमीके झरिषो करै । वृन्दावनचंद नखचंद समता के हेत चंद यह मंद कोटि बंद करिवो करें ॥ १ ॥ ४२. बिंदादत कवि चाँदनी चटक चारु चौतरा में चंदपुखी चाँदनी विलोकिये को बैठी सुकुमार है । कैलि रही चाँदनी चटक तैसी अंगन की चोर चंदन सुगंधन को सार है । ॥ विद्यादत्त कहे है हुहारे मनिवारे न्यारे सोभा सौ फंवारे जल सुघर सुढार है । मौतिन की
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