पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२२
शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज सी फंसी अहि ससी सोभा जुलुफ मरोर स रॉ ॥ मिया संग सोहैं। बातें करत रसोंहैं विश्वनाथ सोऊ से, सुख जोहैं है चकोर सों। दूनों और चौंर चारु भये पर आये राम सेवक सलाम दास कीन्हों। हूँ औओंर सों ॥ २ ॥ ६६. विष्णुदास कविं दोहा--नय जलचर दस ब्योपचर) कृमैिं तेरह वन बीस । विष्णुदास कवि कहत है, मनुज चारि पशु तीस ॥ १ ॥ दस सरवर दस हंस हैं, दस चॉतक दस मोर । राधा के बदन पर) वसत चालिसौ चोर ॥ २ ॥ आदि सिंघ पावक बाज तम, बात लिखी ततकाल । लिखि भसमासुर घन बैंधिक हरि फिरि लिख्यो उतांल।।३॥ सिंहिनि को एके भलो, गजदलगंजनहार । बहुत तनय किहि काम के करितनय हजार ॥ ४ ॥ दरखन दसत हरि सहित, कमला परम प्रवीन । द्वादस कर पद दस सहिंतआठ नयन सर्सि तीन।। ४७०. बलराम कवि । केलिघर सुघर सिंधारी अभिसार करि बार शूर्षि अगर अपार नेह पी को है । कहैबलराम जाकी छवि ना छपाये जुर्सी छषा में छबीली छविचारों अंग तीं को है॥ बारभार .चलते मचकत बाल जावक के भार पग गौन करिन को है। जानतं छपाकर चकर जातरूप चोर भंग जानि गुजत सुमन मालती को हैं ॥ १ ॥ ४७१ विट्ठलनाथ (१ ) गोकुलस्थ पद जमुना जो’ नाम ले सो सभागी । सैोई रसरूए को सदा चिंतने करे नेक नहिं कल परे जाहि लागी॥ पुष्टिमारग परम आतिदि दुर्लभ परमछाँड़ेि सगरे करम मेमषागी ।