पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५०

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शेखांसहसर। गति कुंबृजत अमित गचंद टु की लखि कौन रहे अपने मन में ॥ पगिया सिर लात रही झुकि भाल ों पीत गा झल तन में ये उपमा उपजी जिय में मानो चला लपटी स्याम घन में ॥ ी लवे लट पुख ऊपर राजत है रज गोन में । चित्रलिखी सी रहिगई ता छिन शृंदावनम वृंदावन में ॥ १ ॥ ४६७विदास a : आलजुत देखियत जो भभिनी। राजन हैं रतनारे नैनन पिय ढंग जगत गई जामिनी ॥ वाँद उाय जोरि जमुहानी ऐंड़ानी कमनीय कामिनी । भुज टूटत छवि याँ लागत मनु िभई है टूक दामिनी ॥ कुच उतंग पर रची कंचुकी सोभित त्रिवती दर स्थामिनी । , मानो मदन ड्रपति के तंबू हरिमन जीयो राधिका नामिनी॥ विधुरी नलक सिथिल कच डोरी नखछत टूरित मालगामिनी। द्विगुन सुरति करि श्रीगोपाल भजिनमुदित विद्यादास स्वामिनी 1१ ॥ ४६८ध्रपति श्रीराजा गुरुदाखिलें बंधलगोती अमेठीनरेश सीसफुल सूर सीसथली को विभूपें भूप मंगल सुरंगबिंदु चंदन को मलकें । टीको सुगुरु मुख चंद को घिलोके मु लटकमोती सोन रोकें राहु अलके ॥ ठोढ़ी रॉक स्याम सनि गोरे रंग बुध गनि ऐडत डिटौना केतु सौतिन को तल*। उच्चथल परे हैं सकल ग्रह तेरे श्राली या ते बनमाली लोटपोट कोटि ललके ॥ १ ॥ मीन है कमीने पेरे पानी में निहारे हरि हरि के चकोर तते चुगत गारे हैं । भूति भनत गज कंजन के खंजन के जन गरब करि डारे के निकारे हैं ॥ डेरे रतनारे तरे का ठे सितारे सेत उपमा १ सूर्य ।२ बृहस्पति। &