पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५२

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शिवासिंहसरोज के ३ 3 । ५०३ भगवतीदास नहण ( नासिकेनेपाख्या ) मोहा--एते कर्मन पातकी, देखें हप जमार । निन कहूँ त्रास दिखावहीं, पूछईिं बारईि बार ॥ १ ॥ क्विज , संध्या नहिं करें, प्ररु नहाय दिन खा ि। तिनके सिर अरा चहैिंयहि में, सय नादि ॥ २ ५०४, भगवानदास निरंजनी (-भतृहरिशतक पा ) अरे यूरे काम कूर वानष्टि पैंथा पूर कोकिल कलभ और मोको मैं सनावेंगे । तरुनी विचित्र बाम महारस भरी काम अनत कटच्छ थाम चित न चलायेंगे ॥ चन्द्रधरचरनचकोर है के चित लाग्यो काम जायो जानि केसौ सम्ड गुन गाँचेंगे । डरें नाहीं तासु डर चूल्यों है तू काके बंर भगवान रुद्र वर रुद्र है के धावेंगे 1 १ ॥ ५०५. भोज कधि प्राचीम ( ९.) बातन ते गोरख कवीर तवज्ञान पाये बातन ते संत औौ महंत इ पुजात हैं | वातन हे कितनी परेत धुत मुंह बोलें यातन किये ते कारे नाग पतरात है ॥ बातन ते मोहि लेत सजुहू को एत हैं। में बातम ते के वादसाह साँची बात हैं । भोज कहे बात करामात बिना बात कैसी बात कहि व तौ तौ बात करामात है ॥ १ ॥ ५०६. भोजमिश्रकवि (२ ) ( मिश्रगारग्रंथ ) हूल उठी ड्रैम थेि में यह बात सुनेत्रास परो सारी वादसाही के आवास में I खान सुलतार पने दाँतन तिलका धर्ण ऑतन पखेरू पीरो मारे एक स्खास्त में 1 भोज रतलेस से सवद्दे करी राजा रोष बुद्ध बलवान वीरताई के ग्रवास में 1 अप्सरा अकास में तमा लगी जा सके पु ता समें कटारी एक मारी ओम खांस में ॥ १ ॥ १.संतपुर ।