पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५३

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शिवसिंहसरोज

शवासंहसराज ५०७भोज कवि ( बिहारीलाल भट चरखारीवाले , ३ ( भजभूषण ) चाह के हैं चाकर गुलाम गोरे गतन के सेवक हैं साँचे सुघरई । खदान के । खानेजाद खाँसे वती के भोज भमैं जोरा बरदार तेरे कदम क।न के ॥ छोरा Jाँह छवि के पिछौरा पाँय पोंछन के भौंरा खुसबोइ मुख मधुर बतान के मोह के मुसाहब मुसद्दी दृफेरन के हेनके हुकुमी हजूरी दाँस जान के ॥ १ 1 आवदार अजय अनोखी आनिया अलबेली ऐसी गाँवें ऐन ऐननसे रूखीसी। भोज भनै जोघन जलूस मैन जानें जोति जोति जोम जुल्म ढलाइल में पूर्वी सी ॥ ताकि जाती तीखन तिरीछी तरुनाई पर तेरी दृग-नो; तेज तीरन ने तीखी सी । नैन मदि जाती चाह चोष चलि जाती दि थो फोरि बढ़ि जाती कढि जाती साफ सूखी सी ॥ २ ॥ मुंगसावक के दृग देखि बड़े सजि वेन भली रुचि कॅाँग सँवारें । युकी केसरि के रंग की पुनि पाँयन पायल की झनकारें ॥ भोज भले कष्टि हरि की छवि बीनि लई गज ऊपर बारें । सारी भली जरतरी से सिर चौधिसमास को ह्युष्ट ड* ॥ ३ ॥ भोज भमैं एते होते हलके हरामजादे होसहीन हीजन सो हर्गिज हितैये ना । कल ही कलंकी कुर कृपिन कुनामी काक कटी कुकर्मी क्रोधी किंचित हितैये ना ॥ चूतिया चर्चााई चोर चंचल चलाँक चित्त चोपचोष चख तिन तरफ चिरैये ना । बदीबिदराही वदनामी वकॉल बद बंदरद वेदिल सॉ बात वर्तये ना ॥ ४ ॥ ५२८भानदास रुचि चरखारीवाले लीलम हरिद्रारंग बंदरी हलवी पटा मानसाही खाँड़ा घोंप ऊना तेग तरनो । मिसिरी नेवाजखानी गुफ्ती जुनब्बीरखानी सुलेमानी खुरासनी कत्ता तेग करमो ॥ सैफ गुजराती अँगरेजी औ दुदम्मी रूसी मक्की त्यों दुधारा नाम डौत नामधरनो गुरदा मगरवी