पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५४

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शिधसिंह सरोज २३५ सिरोही & फिरोज खानी भान कवि एती तरखारिजाति बरनो ॥ १ ॥ ५०६. भूधर कवि काशीवासी मदन मनीषत्ति के दूत से भंयत भर भौन भालु मानिनी की जोति रही दवि हैं । पीतप की चाह चहुं ओर ते उछह भय वारुनी को राग लखे राग रहो फधि है ।| मैन को सुभाष हावभाव चित्त मिलिट्टे को आागम जनायो तहाँ भूधर सुकवि है । चंद है न चाँदनी न तेज है न तप तैसो रवि है न राति है छबीली एक छवि है ।१। सीरे तहखाने तामें खासे खसखाने सींचे अतर गुलाब की बयारि रपटन है । भूधर कुंवारे हौज टत फुहारे वारे भारे तावदान पति पू प उपटत है ॥ ऐसे समै गौन कहीं से करि कीजियत सुधा की तरंग प्यारी अंग लपटत है । चंदन किंवार घनसार के पगार प्यारे त आनि ग्रीपम की हार झपटत है ॥ २ ॥ बार बार बैल को निपट ऊँचो नाद सुनि डंफरत वाघ विरझानो रसरेला में । भूधर भनत ताकी बास पाइ सोर करि कुत्ता कोतवाल को बगानो बममेला में 7 फुफरत टपक को द्वपक जंग तासों जंग करिवे को झथो मोर झदहेला में 1 मापुस में पारपद कड़त पुरारि कलु रारि सी मची है। त्रिपुरारि के तबेला में ॥ ३ ॥ ५१०. भू डर कधि श्रीमस भू जस कम्ड सो कपूरसम कुंज सो कलानिधि सो रा. कामतरु सो । कैरख सो कन्द सो करीस सो है करकासो काँस सो कपास सो औ कामधेनु बर सो कमला के पति सो है कमला के पितु ऐसो कमनीय हीरा सो कदरि सुधासरु सो . कलिका क मएडली के वातन सो सोभित है भूख़र सुकवि भरे कासीपतिघरसो।१। कोई एक कामिनी रमन परदेस ताको भेजी है उसी ताके नीचे लिाख अहिपति । भूसुर सुकवि बा ऊपर में सिच फिरि पवन चंपक बनाई है सुपरमति ॥ झत कविन्द्रन को बात याळो भाव