शिवासिंह सरोज २४७ n
जुलहा विनाये दर पट से 1 नंदजी के कामरी न यहौ वसुदेव जू के तीन हाथ पहुका लपेटे रहे कट से ॥ मोहन भनत यामें रावरी बड़ई कहा राखि लीन्ही आानिवानि ऐसे नटखट से । गोपिन के लीन्हे तब चीर चोरि-चोरि यघ जोरजोरि लागे देन द्रौपदी के पट से ॥ २ ॥ गोकुल गैल में बैल फिरै आति फैल करै मन मैन जगाई । नेक विलोकत मोहंत मोहन मानिनिमान को दूरि भगायें ॥ विcण विरंचि विचार मनावत गाषत कीरति मोद पगायें । । बावरी जो पं कलंक लयो निरसंक है काहे न अंक लगावें ।३॥ ५३१. मुकुंदलाल बनारली, रघुनाथ कवि के गुरु रति के मुरीद महबूब बेदरद दोनों पनि के प्याले पल अलफ़ीन झेलेंगे । सित औ अजित डोरे पुरुष सुरि सेली कोए कलमन तिपथन उठेलेंगे ॥ अंजन इलाही और पगे हैं। मुकुंद कहै नजरि की आासा मन माहें जीति खेलेंगे । रचे नैन . वेनया विहंद छवि छाके वाँके मैन सर खाल नंदलाल पर मेजेंगे।१॥ ५३२. मुकुंदसिंह टूर्नी चन्द्रान भले बान कुहुक-बान वेत खुमान जिमी आसमान रहो । छूटें ऊँटनायें जमनादें हथनाले टूटें तेगन को तेज सो तरंनि जिमि व्में रहो ॥ ऐसे हाथ हाथन चलाइ के मुद्रसिंह अरि के चाइ पाइ वीरभ्रंस रह्यो । ह चले हाथी चले संग छोड़ेि साथी चंले ऐसी चलाचल में आ चल हाड़ा है रहो ॥ १ ॥ ५३३, माखन कवि (१ ) खंजन नवीन मीन मान के उमा के देत नाके देत गमद कंजके कहाँ के हैं । ठौर टर Iवर भ्रमत जाके ताके संग माखन चकोर कहै चल चलाँके हैं ॥ ऐसे ना रमा के ना उमा के ना तिलो १ क।ि२ सूर्य । । - ध