पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७४

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शिवसिंहसरोज २५ ५ ( उम्दारपंगल ) दाता एक जसों शिवराज भयो जैसो अब फतेसाहि स्त्री- नगर साहिबी समाज है । जैसो तो चितौरधनी राना नरनाह भयो जैसोई मापति यूरो रजलाज है जैसे जयसिंह जसवन्त महाराज भयो जिनको मही. में आज बठ्यो वलसाज है । मित्र साहिनन्द सीबुंदेलकुलचन्द जग ऐसो अब उदित सरूप महराज है ॥ ६ ॥ लखमन ही संग लिये जोवनविहार किये सीतहिये वसे कहो तासों अभिराम को 1 नवदलसोभा जाकी विक सुमिने रात्रि कोसरें वसत कोऊ धाम धाम ठाम को ॥ कावि मतिराम सभा देखिये अधिक नित सरसानधान कथि कोविद के काम को कीनो है कघित्त एक तामेरस ही को यासों राम को कहत के कहत को वाम को i ७ ॥ ( रसराज ) चन्दन चढ़ा री नभ चन्द न चढ़ारी अंग चन्द उनियारी देखि नकरात कैसी है । हूँद फन्द फुकुंदी सीली गॉठि mदि दि भूदि दि मुख मन्द मतरात कैसी है । ! मातरम मिलन विहारी को तू प्यारी चल नित रतिवारीआज जफरात कैसी है । कतरात कैसी बात बतरात कैसी जात सतरात कैसी रात इतरात कैसी है । चोर की चोर चिनार छिनार की साहु की साहु वली की बली । ठग की ठग कामुक कामुक की अरु बैल की बैल छली की छली ॥ परवीनन की परवीन ही याँ मतिराम न जाने कहाँ धाँ चली । इन फेरि दियो नथ को शुकता उन फेरि के झूफी गुलाबकली |है॥ गोषवधु तन तोलत डोलत वोलत बोल चु कोमल भावें। ऊरू नितम्बन की गुरुता पग जात गयम्दन की गति नाखें ॥ १ कमल ।