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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२८५

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शिवसिंहसरोज

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के . को दूर के न डा फेरि पुख दिखाऊँ ना। खेलन न चारों खि लवार ना कहाऊँ जो फै लाड़िलीवि के वि नैवाजे बजवा ना1१ ॥ तुम नाम लियावती हौ हम मै हम नाम कहो कहा लीजिये औ। अघ नाव चलें सिगरी जल में थल में न चले कड़ा कीजिये ॥ कधि मंचित औसर जो असती सखती हम मैं नहीं कीजिये । जू हम तो अपनेो बर पूजती हैं सपने नहीं पी पर जिये जू ॥ २ ॥ खें गुलाब सी खासी लसे मुख नासिका बिंब धरा ग्र वली को । भारी नितंघन जंघन पीन वनो कटि छीन बनाष लली को ॥ संचित भीजो लसे उर चीर उरोजन घोष सरोजकली को । बाँषि के जूते कसे गंगिया मन पूरे करें तिय बैल छबली को 1॥ ५६८, मुबारक, सैयद मुबारक अली बिलग्रामी नप के पूँज सुघरई के सदन सुख सोभा के सह ोंर सावधाने मौन के 1 लाजन के वोदित पुरोहिी प्रमोदन के नेल के नफीव चक्र त्रत चितचोज के ॥ दया के देवान पतिव्रत हू के प्रधान नैन ये मुबारक विधान नवरोज । सफरी के सिरताज प्गन के महाराज सदैव सरोज के पुसाहव मनोज के 1 १ ॥ दीरष उजारे कजरारे भारे प्रेमनद कोकनद के से दल राजत भंवर से । सुपर संलने के मुबारक सुधा के दोने छवि के विछने के यमलता के घर से ॥ लाज के जहाज केंध मान के विराजमान राधिका सुजान अंजु तेरे दृग दरसे । चकर चकोर भये मृग दास मोल लंबे खंजन खवास भये सफरी नफर से ॥ २ ॥ कान्ह के वाँकी चितौन चुभी चत काहि त् झाँकी री ग्वारि गवाछन ॥ देखी है नोखी सी चोखी सी कोरन ओछे फिरें उभरे चित जा बन ॥ मायों : भारि हिंथे में मुबारक हैं सहजे कजरारे मृगाछन ॥ काजर दे री न एरी सुहागिन गाँगुरी तेरी कटेंगी कटाछ न ॥ ३ ॥ S SC