पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२८६

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शिवसिंहसरोज २६७ छल करि जैल त िगोकुल की गैल लगी कुविज्ञगा चुगंज पगी मन द व काइ है । आप हैं सुखारी हमें कियो है दुखारी प्रीति पाछिली विसारी को एक कबू ना इहै ॥ घनस्या जीते ब्रज जामवासही ते हैं मुबारक पिरीते सो यहाँ पर न पा २ है। मरन उपाई है न देखि है न पाइ है जु के कलपाइ है सो कैसे कल पाइ है ॥ ४ ॥ कनकवरन बाल नगन लसत भाल मोतिन की माल उडर स हैं भती भति हैं । चन्दन चाइ चारु चंदपुखी मोहिनी सी. मात ही नन्हा पगु धारे मुसफाति है ॥ चुनरी विचित्र स्याम सनि के मुबारक ढाँकि नखसिख से निपट सयुयाति है । चन्द्र म लपेटि के समेट्रि के नखत मानो दिन को प्रनाम किये राति चत जाति है : ५ । ५६. मनोहर कवि ( १ ) राय मनोहरदास कछवाहा दोहा-अचरज हैिं हिन्दू तुरुफ, बादि करतं संग्राम । एक दिएति स दिपत प्रति, कावा कासीधाम ॥ १ । इन्दु वदन नरगिस नयन) सम्युल यारे यार । उर कुंकुम कोकिलवयन, जेहि लाखि लाजत मार ।॥ सुथरे बिखेरे - चीकनेने बने ठंडार । रतिक्रन को. जंजीर से , बाला तेरे वार ॥ ३ ॥ अकवर सों वर कौन- पर, नरपति पाति हिंदुबान से करन चहत जेहि करन सों, लेन दान सनमान 17 ४ । | ५७०. मनोहर ( २ ) काशीराम भरतपुरवाते ( मनोहरशतक ) दोह-औोछे नर के पेट में, कैसे बात समाय । विन सुवरन के पात्र के, बाघिनि- दूध नसाय ॥ १ :॥ न्य औपनो चाहिये, लंक नयन की नायें । तनक झोंक चख पर पेरे , वहीं पलक अईि जाचें . २ ॥