पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३१४

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२९५ तैसे मिलो तिन्हें आनि ये मोर घु जोर के सोर जरे मैं जराने ॥ प्यारे को नाम मुनाथ सखी हिये पापी पपीहा ये सूल उठावें । नेह नवेली मरी अब हाँ दिन दोइक परीिय जू और न नावे 1२॥ दोहा—श्री सीतापतिचरन, हिये ध्याय सुख पाय । रूप स।दि विरचत विमल, रूप विलास सुहाय ॥ १ ॥ छत्रसाल चंदेलमनि, ता खुत श्रीपिरदेस । सभसिंह तिनके तनय, ता सुत दिन्झुनरेस ॥ २ ॥ कायथ गनियरबार है, श्रीवास्तष पुनि साम । कीन्हो रूविलास जिनग्रन्थ अधिक यभिराम ॥ ३ ॥ गुने सेसि बैंड सात जानिये , संघत अंकमकास । भादौं सुदि दसमी सनी, जनम्यो रूपविलास ॥ ४ ॥ ६५६. रघुनाथ कवि बंजन, काशीवासी ( रसिकमोहन ) लायत में न सुगन्ध लखी सब सौरभ को तन देत दी है । अंजन जैन हू चिन स्थाप बड़े बड़े नैनन रेख लसी है । ऐसी दसा रघुनाथ लखे यहि आचरफे मति मेरी फस्ी है । लाली नवेली के गठन में बिन पान कहाँ से थर्रा आन वसीहै ॥१ ॥ ( ज गंतोहन) तिमिरं परंत फुलकेरांव जात रंग रूप सरसात अंग रोज़ नव बर के। फुलत चिंटें वेलि गुजत वर फिर पंथ लागेचलन पथिक थरथर के ॥ बेदखूर्ति होत हूँ दूध को स्वत गऊ असनदसन ध्यान पूजा हरि हर के । रोग जात सोग जात कहै कवि रघुनाथ उवत परेखे चोर देखे दिनकर १। ( काट्यकलाधर ) विरची सुरति रघुनाथ कुंजधाम बीच कामवस बाम करें ऐसे १ खुशबू । २ भागता है । ३ कुमुर (कोकाचेली )। ४ वृक्ष । ५ जग ह-जगह के ।