पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२

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शिवसिंहसरोज
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शिवसिंहंसराज

३२. अलीमन कवि

जैयंत प्रीतम प्यारे विदेस को मोहिं कहा उपदेस बतैयत । तैयत हैं छतियाँ जो कहीं बतियाँ चलिये की सुने त्रिलखैयत ॥ खैयंत रावेरे पाँय की सैंहैिं अलीमन याको उपाय ना’ पैत । पैथत ऑधि के औसरे जो विखरे तेजिमें यह लांज लयत ।।१॥

३३. अनीस कवि

सुनिये चिदंप प्रभु पुहुई तिहारे हम रखेहाँ हमें तो सोभा रा-पैरी बढ़ाई हैं। तजिही हर्षि के तौं विलग न सोचें कबू जहाँ जैहै तहाँ दूनो जस गाइ हैं ।। सुरन चूकेंगे नरसिरन चगे पर मुकवि अनीस हाथ हाथ में विकाइ हैं । देस में हैंगे, परदेस में रहेंगे, काहू भेस में रहेंगे, तऊ रावरे कहाई हैं ॥ १ ॥

३४ अनुनैन कवि

हुति देखते दंतन की हिय हारत हरन के गन दौड़िम हैं। पए वित्र चात सुधां की मिठाई सुधाधर सो धरँ, सालिम हैं । अनुनैन बनी अंकुटी कुटिलै कल मैन के चाप सों आलिम हैं । जग जहिर जोर जनाई सके अँखिया जमराज स जालिम हैं।

सुंदर सजीले परलंब सहजीले राधे पर लजीलें सुभकाजन कजीले हैं । वेलिन वसीले अलि वोलिन इँसीले आदिरस में रसीले रूप जसमें जसीले हैं । नेहं सरसीले परनेह पर सीले अनु नैन चहकीले चटकीले मटकीले हैं। तेरे कच नीले-छुटि छवि से छबीले मानों पदंग रंगीले मैन क्षेत्र पति कीलें हैं ।।२।। ~~ --१ जलती है ।२ वृक्ष । ३ फूल । & तुम्हारी । ५ अनार।६ चंद्रमा । ७ अधर । ८ सर्प ।