पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३

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शिवसिंहसरोज

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शिवसिंहसरोज

३५.अनन्य दास ब्राह्मण चकेंदवावाले ( अनन्ययोग ) छंद-का होत मुड़ाये मूड़ वार । का होत रखाये जटाभार ॥ का होत भामिनी तजे भोग । जौलौं न चित्त थिर जुरै जोग ॥ थिरचित्त करै सुमिरन झार। ऊपर साधे संघ लोकचार ॥ यह राजजोग सुख को निधान । कोई ज्ञानवंत जानत सुजान ॥ सुखमारग यह पथिचंद राज । यहि सम न आन तम है इलाज ॥

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३६अनाथदास कवि

छप्पे-चतुरानन सम बुद्धि विदित जो होहि कोटि धर । एक एक घर प्रतिन सीस जो हहि कोटि बर ।। सीस सील प्रति बदन कोटि करतार बनावहि । एक एक मुख माँह रसने, फिरि कोटि लगावहि ॥ रसन रसन प्रति सारदा कोटि वैठि वानी, बकाहि । नहि जन अनाथ के नाथ की महिमा तबहू कहि सकाहि ॥ १ ॥

३७अक्षरश्रनन्प कवि

दुखन साँ दुख और सुखन सौ अनुराग निंदक साँ वैर फिर बंदक सों गीरी है । पूजा को भरम औ पुजायदे को देमैं, जौलौ पाये ते खुसी हैं अनपाय दिलगीरी है ॥ जीवन की आस औ मरन की फिकिर जौलौ बिना हसरिभक्ति जत्क जामत की जीरी है । अक्षरश्रनन्ष एती फार्थी न फिकिरि जौलौं ताला फनिति बाबा फुरै ना फकीरी है ॥ १ ।।

३८चासकरत

उठो भरे लाल गोपाल लाड़िले रँजनी बीती विमल भयों भोर । घर घर में दधि मयत गोपियाँ द्विज करत वेद की शेर ।' करो कलेंऊ दधि अरु ओदन मिसंरी बाँटि परोसो ओर । आसकरन प्रभु मोहन तुम पर वारों तन,मन,मा प्रान आकोर ॥ १ ॥ - १ ब्रह्मा ! २ जिह्वा । ३ पाखंड ४ रात।