पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२२

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शिसिंहसरोज ३०३ सन तरबारिन में मन परमेश्वर में पन स्वामिकार में माथोहरमाल में ॥ १ ॥ मिली पावार को हजार करि धारा तक पारावार बेग को न पारापार सरि की । बन्दों नागदारा नागदारा देवदारा लाल मानो हंस चांरा चार कित कल हरि की ॥ जाति विधि द्वारा जमकारा ना बरुनकारा हाइ पापी पापन को मारा मैन-नरि की । पारा ते. सरस दूधधारा से सरस चन्दतारा ते सरस सेत धारा सुरसरि की ॥ २ ॥ ( चिप्एबिलास नायिकामेद ) बाँह हुलाइ चले अति एंड् स भांन हैं। हसे बात कई री। गोल कपोल उठंस नितम्ष त्रिलोकत लोचन लागि रहे री ॥ जानति है गाड़ि जात हिथे खन जो भरि अंकम नेऊ गहे री। वाहे न कान्ह रहे निपटे लटि यह जोघन याहि लहे री\१ ॥ तरुन तय बस रसिक सदा सुखही है । । प्रति रॉभर निश्चिन्त न चित विकृति गहै ॥ राजा उदयन वत्सराज सम होइ जो । धीर ललित पुविवेकी नायक को सो ॥ १ ॥ ६७२ लाल कवि (२ ) बनारसी यूरिन फेंहारै गजघंटनि महारै रक्त पियत अपारै ऐसी जालिम जवाल की । जंग जीतने की जामें आमित कला है काल की। सी अबला है ऐसी सोहत हवाल की । ॥ कई कवि लाल जंग मुकुतिजुगुतिवारी चेतसिंह कर घारी है धाँ कौन काल की। जमदण्डिका सी रंन वीच चण्डिका सी है -कन्या सी तेग कासी-महिपाल की ॥ १ ॥ छोटे छोटे पात कौनौ काम के न ठहोते देखे छद्र गुंह मन कैसे के रसांइये । मैने पैने फएंटक १ समुद्र।२ ऊँचे । ३ शत्रुको