पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३६

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त्रिसिंहसरोज ३१३ से - ना कुच कंचुकी छो लला कुच कन्दर अन्दर अन्दर वैो ॥ ४ ॥ वे थिर की बतियाँ कहि के थिर जे थिरकी कहि वे थिर की हैं । वे ख़िरकी खिरकीन वतावत के ख़िरकी खिरकी खिरकी हैं । ये सरदार सुमैं सबरी नवरी नबंरी नघरी टरकी हैं । वे घर की घर -की न विचांरत ये परकी परेकी परक हैं । ॥ ५ ॥ ( र िरुप्रियातिलक ) दोहवास ललितपुर नन्द है, हरिजन को सरदार । बन्दीजन रघुनाथ को पा लत पवनकुमार ॥ १ ॥ छपे सरस तू जंससं4ि उंदित होइ दिननि प्रकासित । मारहएड उंड तेज़ ब्रह्मएड विलासित ॥ पंचदेव परिपूर क्रिया गकोर निहारे । दुसमन दावादार पॉइ पर सीस सुधारे ॥ सरदार सुच्छ अतलच्छ टह अच्छ अच्छ क्रीड़ा करो । पुत्रन समेत ईस्वर सुपति सीस विम अंसि घरो ॥ १ ॥ ६८सुरंदाजी ( सूरसागर ) देखे री में प्रकट हादस मीन । पट इन्दु द्वादस तरनि सोभित विम् उडगन तीन ॥ दस-नष्ट चैम्बुज कीर पख के किला सुर एक। दंस है चिह्म दामिनी पट ब्याल तीनि विसेक ॥ त्रिबलि पर श्रीफल विराजत उर परस्पर नारि । ब्रजकुंवरि गिरिधर कुंवर पर दूर जन बलिहरि १ ॥ १ परकीया ।२ सूर्य ।३ नक्षत्र 18 हूँगा।