पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३२६
शिवसिंहसरोज

३२६ शिसिंहसरोज 3 २ दाता ज्ञाता हूमाछुगति इनाइतिखान। याति फाजिल फ़ाजिलघली, तिन के भये सुजान ॥ २ ॥ रची कपिल मुनि कंपिला, बसन्त पुरस्सरी-तीर । निति दिनजा में देखिये, कथि कोविद की भीर ॥ ३ ॥ आलहयार खाँ भुज बती, सुमति मुरसिरताज । जिन्हें दियो कविराजपत्र, बड़े गरीबनेबाज ॥ ४ ॥ ७१०. शिवसिंह प्राचीग (१ ) हाँ जमुना जल जात अचानक बामक ल गेंदलाल ठई । तव दौरि घरयो कर सर्षा कर को उर लाइ कई जg निद्धि ई । सिवसिंह नहीं परस्यो कुच को तुतुराइ कल्बो अब छोड़ बई । भुज ते नियुकाइ गुपाल के गाल में गुरी बारि गड़ा गई ।।१। ७११. शिवसिंह सेंगर काँधनिचालीग्रन्थ के कर्जा ( २ ) पियो जब सुधा तब पीछे को कहा है और लियो सिघनाम तब लेइवो कह रहो । जाम्यो निज रूष तब जाने को कहा है और त्याज्यों मन चासा तब यागिबो कहता रह्यो ॥ भमैं सित्रसिंह तुम मन में विचार देखो पायो ज्ञानधन तब पाइ वो कहा रखो। भयो सिवभ तब कैंचे को कहा है और थायो मन हाथ तब आइवो कहा रह्यो ॥ १ ॥ महिष से मारे मगरूर महिपालन को बीज से रिपुन निरवीर भूमि के दई। मुम्भ औ निकुंभ से हारि झारि स्लेच्छन के दिल्लीदल दलित दूनी दरबिंन लै नई ॥ प्रबल प्रचण्ड जदएडन सकें गहि खग चएड ' खलन खलारी खाक के गई । रानी महारानी हिंद लन्दन की स्क्री हैं। ईश्वरी समान मान हिंदुन की है गई ॥.२ ॥ सिंह से पछारे सिख स्याही सम पेसवान स्यार से सिराज भेड़ियान सी १ ८