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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५०

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शत्रांसद सर re हैं । २ . - साँझ ही ते रतिकी गति जीति लोक आसन गिरा गाघति। बारिजनैनन बारदिवारन बमों को मिठुभोर छपाति ॥ केलिकला के तरंगन सॉ हद्रि मोहन लाल को ज्य ललचायाति। यूक्रेमें वीति गई रतिया पै त छतिया तिवे छोड़ेि न भावति 1३। स्रुटि उठं उधेि बैठे भटू फिझकारें बें वर्षा से मुख़ फेरे । दूनी है जाइ हुये कॅचरा छर फुॐदी के छरा तन हेरे ॥ चेरे से के लिये सम्ड सदा ६काज अता के जति न मेरे । बाल के ख्यालहि में केंदलाल हैं छकि रोज पीपर घेरे. ४। रीति तो विपरीति सजी रसना वजी मंजुन ललेक । के घोस ते। वों उर वच उरोज दवे ठप सं बचे हैं अ के सांसते ॥ चाषि कपोल दुर्द कर ों गुरद दूति पारी अनंदित तोत ते । बैर तजे मधु चंद पियें मकरंद पर नो अरविन्द के कोस ते ॥ th गंगाराम जानति न खिन के पट रेंगे सरि के भ्रम न पखारें सारी सेप्त है । अधर खटई बढ़त क्यों ललई जाइ अरुन सुभाष ही कई धाँ यह चेत है ॥ नैन प्रतिविम्ष परै यारसीमहल मध्य सम्मुरराज वरन कपाट दे दै लेत है । वं खैरी ट जानि दौर दौरि गहै आनि जघ्र पूठी पर झी तब छोंहेिं देत है।६। फूलन को विनिो हराइ के याहू के दूती मिलाइ दई । लाल निहारि निहाल भये छधि कुंदनमाल सी वाल नई ॥ कर ते छुटि भागि दूरी पग है बलि पै न चली क चतुरई । हरि हेरे न पावत भाबती सम्भु कुसुंभ के खेत हेराइ गई' बालम के विडरे बढ़ी बाल के व्याकुलता घिरता दुखदानि ते। चौपरि आनि रची प सम्भु सहेलिनित साहे विनी सुखदानि ते ॥ N १ गोंद।२ एक प्रकार की रति । ३ डेंगूबा पक्षी । ४ छिपी ।