पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५५

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शिवसिंहसरोज

३३ शिवसिंहसरोज के मोह तेमनोज ते मढ़ो परे ॥ झाँकती झरोखन ते ओझा के भकोरन ते झाड़न ते झारन ने भूमि जुड़ो परे। पान के प्रथून ते पराय ते पहारन ने हारन से हम ते हिंमन्त हुमड़ो परै ॥ १ ॥ ७३२सतबकस कवि होलपुर कारी सारी सोहति किनारी कोर कानन लौं कफना कनक जूरी कारी कर में हुई । कारी लोनी लतिका सी उरज भुजंगी कारी ठोढ़ी ठकुराइनि की कारी कारी सोभई ॥ कारी अभिलाष ब्रजराज पास कारी त्यों ही उत्तरि आटा ते कारी कारी मग को लई । कारी दि िकारी निसि कारे नैन कानन तौं कारी कंडक्की को पेन्हि करे कान्ह मै गई ॥ १ ॥ ७३३. सन्तम कवि जाजमऊ के (२ ) वे वरु देत लुटाइ भिखारिन ये विधि पूरुख दानि गऊ के । दे रॉखियाँ चितवें उत वे इत ये चितवें रॉखियाँ यकऊ के ॥ बें उपमन्यु दुखे जग जहर पाँड़े बनस्थी के ये मध के । वै कवि संतन हैं बिंदु की हम हैं कवि संतन जाजमऊ के ॥ १ ॥ ७३४शोभ कवि चाह सिंगार सँवारन की नव वैसे बनी रति वारन की है । सोभ कुमार सिवान की सिर सोहति जोहति बारन की है । हसन के परिवारन की पग जीति लई गति वान की है । यादि लंबे सरदारन की छनौ रति के परिवार में की है।॥ १ ॥ ७३५, शिरोमणि कवि हूल दियरा में धाम धामनि परी है रोर भंटत सुदामै स्या' वैने ना. अघात ही । सिरोमनि रिदिन में सिद्धिन में सोर पयो कांहि वकसी धौं काँपे ठाढ़ी कमला तही ॥ नरलोक नागलोक N A १ फूख । २अवस्था । ३ थी ।