पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५७

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शिवसिंहसरोज

३४ ० शिवसिंहसरोज १५ " सो अजांने भई जाति है । पाछे पछितैहै बात ऐसी नहिं पैहै टेक तेरी रहि है कहा टेढ़ी भई जाति है ॥ संगम सनावे तोहैिं। हित की सिखावे सीख जा घिन न गंावे भौन तही सों रिसाति है । मोसों अंठिलाति विभ काम को हटाति प्यारी तू तौ इतराति उत राति बीती जाति है ॥ १ i॥ तीर है न .वीर कोऊ करे ना समीर धीर बाढ़ो सम-नीर मेगे रह्यो ना उपाट रे । पंखा है न पास एक लाख तेरे आघन की सघल की रैति मोहिं मरत जियाउ रे ॥ संगम में रखोलि राखी iरिी तिहरे हेत होति हाँ अचेत मेरी तपन बुझा रे । जादू जाiने जान कौन कीजिय त्तल गौन पौन मीत मेरे भन मंद मंद आIछ रे ॥ २ ॥ सोरा नख स्याम बालू कंजा कलजीह जौन काँड़ी पाँवपेंचा पाँद जखम गनी- जिये । बड़ी लूम बालखएडी माई पर झोंकदार मॉड़ा सटखोरा पर नजर न कीजिये ॥ संगम कहत टेढ़े दाँत को दुश्द दान दीवे को पतालदंती मन में न धीनिये । राजसिरताज सिंहाज महाराज लि ऐसो गजराज कविराज को न दीजिये ॥ ३ ॥ ७३६. सुमन कवि दोहा--बाज ) बीर५ वीराबनिज, झूतकला, कल) पोत । सम्मन इन सातहुन से , चोट करे रंग होत ॥ १ ?? विश्र, बैद्य, बालक, बलू, गुरु, गवअरु, गाय । सम्मन इन सात हुन फै, चोट करे रंग जाय ॥ २ ॥ ७४०. श्रीगोविन्द कवि भूप सिघराज साहि त्रव मचएड तेग तेरो दोरदएड भूमि झारत झड़ाका है । फारें -यासमान भासपान को गरव गए डारें मघॉन टू के हिय में हड़ाका है ॥ - कहै श्रीगुधिग्द सब समुन के an

- ‘ १ सूखें ।२ हठ करती है । ३ जु। ४ अजड ५ इंद्र।