पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५८

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शिरसिंहसरोज h f सीसन पै गाज ते गिरत गए गाज ते धड़ाका है । हौवा काटि हाथी काटि भूतल बराह काट काट भीकमठपीटि काटत लड़ाका है ॥ १ ॥ ७४१ सस्iख का ये नर बरघासी रोग सो अमोक्रिन की औपथी को जाने रूख खान की क्रियान में श्वन मन भायो ई मत रन को भूख न बढ़ाइ देत ना- दिन के स्रोधिये द जानि पाये है ॥ कली ना खिलत में हैं। पुरिया : लाली भोगिन को देत सेखी सुख सो सुहायो है । रिझत्रा मोन के आगे गुन प्रगटत ग्राहु बने दे री बसंत द छाथ ॥ पुल न के दोने रथि साकति सुमन खुचि साम्यो. मकरंद चीकनो न खूनसोढ़ है । महानि ऋतुराज काम वेद बाँचत है। छग होम रहता द्विजन को गोतु है ॥ मदनगुपाल देता की ा कीजियन सलीदुल बारी प्यारी तेज को उदोतु है । मकुण्ड के लात टेप ये गिनि और यह वृन्दावन में लूटो होम होती है ।२ ॥ ७८२सुखराम कवि कंडी कोचकी कैसी कस्सी लसी श्रीफल से लसे गुच्छ घिसाल हैं। मोती-ल, बिहरें बँजरें खग, सी जरी जरी जाल रसाल हैं । एती एलहे छधि चेती कहा कुंव केती कहे सुखराम कु माल हैं । । नाइये लीजिये दीजिये जू कछुवीच किनारे लगे लट्ठौ लाल हैं।१॥ ७४३. सुखदीन कधि भाव विभाष प्रभाव दस हाव नव रस को प्रभाव ते सु भाव ही रढ़त हैं । बुनि गुन तीन चारि गन को प्रचार करि वि मत विचार अलंकार न मढ़त हैं । ॥ नष्ट . औ उदिष्ट बर्नमात्रिका सदृष्ट मेरु मर्कटी पताका प्रसतार को बढ़त हैं । । सुखदीन सोहा मनो- हर मुदित मंजु दोहरा हमारे देस छोहरा पढ़ते हैं ॥ १ ॥