पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३६५

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शिवसिंहसरोज

२'? शत्रांसहसराज ७५७. शीतलराय भाट, बड़ीवाले (२ ) छपे चकित पवन गति प्रबल थति रवि नवन पुन: जस । बेकल होंत दल दुर्थन भुवन जस एरि रखो बस ॥ गित बिटैप बल क कोर्ट्स कंपत उर अहिगन। लंवत सिंधु उछलत मनोज दृग जा ढग ता मन ॥ चहुं ओर सोर वरनत कवि बर वि सेन बसुधा बस्ो। दबी जमीन हहलत गिरि जने गुमान हयवर कस्यो॥ १ ॥ ७५८बंश शुक्ल, विगहपुर वाले हैं गुरुलोंग विलोचन चित्त के साँषिनी- सी सदा सा सितारो। जे रन ही में कलंक धरे खरे ने खल चारिईं ओर निहा ॥ पाऊँ धरे को न ठाठे हूँ आघ है: कहा यह बात विचारों । किंसुक दान सुबस कहै अभिराम उरोजन पै तिय डा ॥ १ ॥ दंपति मोद भरे मन में डेंगअंग अनंग पुल बखान्यो । आतंब दोउ दुर्गेन पियावत वॉसव की सरि को सुख मान्यो ।। लेत पिये सिगरो रसनासत्र गोगन जन्म लूथा करि जान्यो। है प्रतिक्घि मनो म में तेहि ते सब इंद्रिन मंजन ठान्यो ॥ २ ॥ प्यारी यु आानिं अचानक आालिन पीतम की कहि दीन्ही अघाई। भूरि भरी पुलकावली याँ सब आंगन में सुखैमा सरसाई। बाल उतल सुबंस है —दलाल के देखन को उठि घाई ॥ भार नितंवन को न गयो कटि टन की मन सैक न आई। ३॥ | देव सुरसुर सिद्धबधून के एतों न गंवे जिंत यदि ती को । आने जोघन के गुन के अभिमान सर्वे जग जानत फीको ॥ १ शत्रु ।२ वृक्षत। ३ बाराह । ४ श्रेष्ठ घोड़ा। ५ पीने की चीज़ मदिरा आदि।६ इंद्र। ७ बहुत । ८ शोभा । & जल्दी । १० जितना । ०