पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८

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१९
शिवसिंहसरोज
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शिवसिंहसरोज

कवित्त । प्रथम सकल सुचि मंजन अमल वास जावक सुदेस केसपासनि सुधारियो। अंगराज भूपन विविध मुखपास राग कज लकलित लोल लोचन निहारियो ।। वोलनि हँसनि मृदु चातुरी चलन चारु पलपल पतिव्रत प्रीति प्रतिपारिवो । केसौदास साविलास करहु कुंँआरि राधे इदि विधि सोरहौ सिंगारन सिंगारिवो ॥ १ ॥

( रसिकप्रिया )

दोहा-संवत सोरह से बरस, बीते अड़तालीस ।

कातिकसुदि तिथि सप्तमी,वार बरन रजनीस ॥ १ ॥
अति रति गति मति एक करि, विविध विवेक विलास ।
रसिकन को रसिकप्रिया, कीन्हीं केसवदास ।। २ ॥

वन में बृषभानुकुमारि मुरारि रमें रुचि साँ रसरूप पिये । कल कूजत पूजत कामकला विपरीत रची रति केलि किये ॥ मनि सोहत स्याम जराइ जरी अति चौकी चलै चल चार हिये । मखतूल के फुल फुलावत केसवभानु मनो शनि अंक लिये ॥ १ ॥

( रामचंद्रिका )

दीनदयाल कहावत केसव हौं अतिदीन दशा गहि गाढ़ो । रावन के अघऒघ में राघव बूड़त हों वरही लइ काढो ॥ ज्यों गज की प्रहलाद की कीरति त्यों ही विभीषन को जस बाढ़ो। आरत बात पुकार सुनौ प्रभु आरत हों जो पुकारत ठाढो़ ।। १ ॥

( विज्ञानगीता )

औरछे तीर तरंगिनि बेतवें ताहि तरैं रिपु केसव को हैं । अज्जूर्नवाहुप्रबाहुप्रबोधित रेवाँ ज्यो राजन की रज मोहैं ॥ जोति जगे जमुना सी लागे जग लोचन लोलित पाप बिपोहै । सूरसुता सुभ संगम तुंग तरंग तरंगिनि संग सी सोहैं ॥ १ ॥ १ सोमवार। २ पाप-प्रवाह। ३ नर्मदा नदी ।