पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४११

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शिवसिंहसरोज


४६ कोविद कवि श्रीपंडित उमापति त्रिपाठी अयोध्यानिवासी, सं० १६३० मै उ० ।

यह महाराज पटूशास्त्र के वक्ता थे । प्रथम काशी में पढ़कर बहुत दिनों तक दिग्विजय करते रहे अंत में श्री अवधपूरी मे आए। क्षेत्रसन्यास लेकर विद्यार्थी लोगों के पढ़ाने, उपदेश देने और काव्य करने में काल व्यतीत करते-करते संवत् १९३९ में कैलाश को पधारे | इनके ग्रन्थ संस्कृत में बहुत हैं, भाषा में हमने केवल दोहावली, रत्नावली इत्यादि दो-चार ग्रन्थ छोटे छोटे देखे हैं । इन महाराज का बनाया हुआ एक श्लोक हम लिखते हैं, जिससे इनकी विद्या का हाल मालूम होगा ।।

मिल्लीपल्ल्विशंपाददुरुगृहिपुरी चंचरी चपावल्लीवाभाति कंपा कलितदलवती फुल्लमल्लीमतल्ली ।। झिल्लीगीष्केववेषां सुरवरवनिता तल्लजस्फी तगी तिर्विन्मल्लावल्लभाशं विदधतु शिशवो भारतीभल्लकंस्ते ॥ ४३ सफ़ा ।।

५० कृपाराम कवि जयपुरनिवासी, सं० १७७२ में उ० ।

महाराज जयसिंह सवाई के यहाँ ज्योतिषियों में थे, और भाषा में समयबोध नाम एक ग्रंथ ज्योतिष का बनाया है ।

५१ कृपाराम ब्राह्मण नरैनापुर जिले गोंडा ।

श्रीमद्भागवत द्वादश स्कन्ध का उल्था भाषा में किया है - दोहा चौपाई सीधी चोली में महेशदत्त ने इनका नाम काव्यसंग्रह में लिखा है | हमको अधिक मालूम नहीं ॥ ४४ सफ़ा।।

५२ कमंच कवि राजपूतानेवाले सं० १७१० उ० ।

इनकी कविता हमको एक संग्रह पुस्तक में मिली है, जो संवत् १७१० की लिखी हुई माड़वार देश की है ॥ ४५ सफ़ा |

५३ किशोरसूर कवि सं० १७६१ में उ० ।

बहुत कवित्त और छप्पय इनके हैं ॥ ४५ सफ़ा ।।