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शिवसिंहसरोज


चौरा गाँव जो पंचकोशी के भीतर है, उसमें इनका घर है। महाराजा उदितनारायण की आज्ञा अनुसार अष्टादश पर्व भारत के हरिवंशपयत का भाषा में उल्था किया है । गोपीनाथ इनके पुत्र और मणिदेव गोपीनाथ के शिष्य भी भारत के उल्था में शरीक हैं । काशीजी में रघुनाथ कवीशवर का घराना कविता करने में महा उत्तम और इस भारतवर्ष में सूर्य के समान प्रकाशमान है ॥ ७० सफ़ा ॥ २६ गोपीनाथ बन्दीजन बनारसी गोकुलनाथ के पुत्र सं० १८५०में उ० । इनकी अवस्था का बहुत सा भाग भारत का उल्था करने में व्यतीत हुआ। शेष काल श्रृङ्गारादी नव रसों के काव्य में बीता‌ । हमने भारत के सिवा और कोई ग्रंथ नायिकाभेद अथवा अलंकार इत्यादि का इनका बनाया नहीं देखा । श्रृंगार में स्फुट कवित्त देखे हैं ॥ लोग कहते हैं कि महाराजा उदितनारायण ने भारत की भाषा करने के लिये एक लक्ष रुपये इन्हें दिये थे ॥ ७१ सफ़ा ॥

२७ गोकुलविहारी सं० १६६० में उ० ।

इनकी कविता मध्यम है ॥ ७६ सफ़ा ॥ २८ गोपनाथ कवि सं० १६७० मैं इ०। इनके बहुत अच्छे कवित्त हैं ॥ ७६ सफ़ा ॥ २६ श्रीगुरुगोविन्दशिहं शोड़ी खत्री पंजाबी सं० १७२८ में उ०। यह गुरुसाहब गुरु तेगबहादुर के आनंदपुर पटना शहर में उत्पन्न हुए थे । गुरु तेगबहादुर का औरंगजेब ने वध किया था। हिन्दुओं के मंदिर इत्यादि खुदाने के कारण रुष्ट हो कर गुरुगोविंदसिंह ने नैनादेवी के स्थान में महा घोर तप कर वरदान पाकर सिखमत को स्थापित कर एक ग्रन्थ बनाया, जिसमें इनके सिवा और कवि महात्माओं का काव्य भी है, और जिसको शिष्य लोग ग्रन्थसाहब कहते हैं। इसमें भविष्यकाल का भी वर्णन है । गुरु साहब ने ब्रजभापा