गया । बहुतेरे कवि नितमंति के लिये नौकर थे, और सैकड़ों
भूमि के चारों ओर से इनका यश सुन हाज़िर होते थे ।इनके
ज़माने से लेकर आजतक जो जो राजा दीवान बाबू भाई बेटे
सभासिंह हृदयसाहि अमानसिंह हिंदूपति इत्यादि। पन्ना में हुए,वे
सब कविकोविदों के कदरदान रहे । राजा छत्रसाल ही के दान
सम्मान सुन-सुन किसी जमाने में बुंदेलखंड बैसवारा अंतरवेद
इत्यादि में सैकड़ों हज़ारों मनुष्य कवि होगये थे ।एक दफे उड़छा
के बुन्देला राजा ने राजा छत्रसालजी को ठट्ठा के तौर पर यह
लिखा कि ओड़छे के राजा अरु दतिया की राई । अपने गृह-
छत्रसाल बनत भनावाई । तब छत्रसाल ने सुदामा तन हेल्यों.
तब कहू ते राध कीन्हों ।यह कवित्त बनाकर उनके पास
भेजा । राजा छत्रसाल ने छत्रप्रकाश ग्रन्थ बनवाया है, जिसमें
बुन्देलों की उत्पत्ति से लेकर अपने समय तक बुन्देलखण्डी
राजो के वृत्तांत हैं । जो युद्ध राजा बीरसिंह देव और
अबदुस्समदखॉं अबुलफजल के दामाद से हुआ है, सो देखने
योग्य है । बुन्देला अपने को एक गहरवार की शाखा अत्
काशीनरेशक अंश में समझते हैं । महेबा इनकी आदिराजधानी
है।। ६७ सफ़ा ॥
२ छितिपाल राजा माधसिंह बंगलगोत्री। अमेठी,
ज़िले सुल्तॉपुर के रईस विद्यमान हैं।
इन महाराज के वंश में सदैव काव्य की चचा रही है । राजा
हिम्मतसिंहराजा गुरुदतसिंह, राजा, उमरावसिंह इत्यादि सब.
खुद भी कवि थे । उनके यहाँ कवि लोगों में जो शिरोमाणिकवि
थे, उनका मान रहा .और ऐसा दान मिला कि फिर दूसरी
सरकार में जाने की चाह कम रही । राजा हिम्मतसिंह के यहाँ भाषा
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