४२० शिवसिंहसरोज ८ जानकीप्रसाद (२ ) । दुशाले की याचना सिंहराज से करने का केवल एक कवित्त हमने पाया है ॥ १०७ सफ़ा ॥ & जानकीप्रसाद कवि बनारसी (३ ), सं० १८६० में उ° । संवत् १८७१ में केश्वकृत राम वन्त्रिका ग्रंथ की टीका बनाई है और युक्तिरामायण नाम ग्रंथ रचा, जिसके ऊपर धनीराम कवि ने तिलक किया है ॥ १०८ सा ॥ १० जनकेश भट मऊ, बुंदेलखण्डसं० १६१२ में उ० । यह कवि छत्रपुर में राजा के यहाँ नौकर हैं । इनकी काप बहुत मधुर है ॥ १०४ सफ़ा ॥ ११ जसवन्तसिंह बघेले, रजातिरवा, जिले कन्नौज, सं० १८५५ में उ० । यह महाराज संस्कृत, भाषा, फ़ारसीं आदि में बड़े पडित थे । अष्टादशपुराण और नाना ग्रन्थ साहित्य इत्यादि सब शास्त्रों के इकई किये । श्रृंगारशिरोमणि ग्रन्थ नायिकाभेद का, भाषाभूषण अहंकार का, और शलिहोत्र, ये तीन ग्रन्थ इनके बनाये हुए बहुत अद्भुत हैं । संवत् १८७१ में स्वर्गवास हुआ ॥ १०९ सफा II ( १ ) १२ जसवन्त कवि (२ ), सं० १७६२ में ड०। इनके कवित्त हजारा में हैं 7 ११३ सफ़ा ॥ १३ जव।हिर कवि ( १ ) भट विलम्रामी, सं० १८४५ में उ०। जवाहिरवाकर नाम ग्रन्थ बहुत सुंदर बनाया है ॥ १०३ सफ़ा ॥ १४ जवाहिर कवि (२ ) भाटू श्रीनगर, बुंदेलखंडी (१ ) सै० १६१४ में ० । बहुत सुन्दर कविता की है ॥ १०३ सफ़ा ॥ १५ जैनुद्दीन अहमद कवि ० १७३६ में उ० । यह कषि लोगों के महामानदानदायक और ग्रांप भी मृह कवि थे ॥ १०६ सफ़ा॥
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