कवियों के जीवन चरित्र ४२१ १६ जयदेव कधि (१ ) कंपिलावासी, सं० १७७८ में ड०। यह कथि नवाब फाजिलआलीखाँ के यहाँ थे, और सुखदेव मिथ कंपिलाषाले के शिष्यों में उत्तम थे ॥ १०६ सफ़ा ॥ १७ जयदेव कवि (२ ), सं० १८१५ में उ०। कवित्त चोखे हैं । ॥ १०६ सफ़ा ॥ १८ जैतराम कवि। । शतरस के कवित्त अच्छे हैं ॥ १०७ सफ़ा ॥ १६ जैत कवि, सं० १६०१ में उ०। अकबर बादशाह के यहाँ थे ॥ ११५ सफ़ा ॥ २० जयकृष्ण कधि, भवानीदास कधि के पुत्र । बंदसार नाम पिंगलग्रन्थ बनाया है । सनसंवत्) निवास ग्रन्थ के खंडित होने के कारण नहीं मालूम हुआ ॥ १०८ सफ़ा ॥ २१ जय कवि भाट लखनऊवाले, सं० १६०१ में उ० । यह कषि वाजिदयली बादशाह लखनऊ के मुजरई थे । बहुत कचित भाषा उर्दू जबान में की है । इनका कापनीति सामायक चेतावनीसंबंधी होने से सबको प्रिय है । मुसलमानों से बहुत दिन तक इनका झगड़ा दीन की बावत होता रहा । अन्त में इन्होंने यह चौंवाला बनाया, तब मुसलमानों से बचे-सुनों रे मुरको करो यकीन । कुराँ माँझ खुदा कहि दीन । लुकुम दीन कुंबलकुद्दीन ॥ ११४ सफ़ा ॥ २२ जयसिंह कधेि । । शृंगारस के कवित्त चोखे हैं। ॥ ११४ सफ़ा ॥ . २३ जगन कवि, सं० १६५२ में उ० । ऐजन्॥ १०४ सफ़ा । २४ जनार्दन कवि, सं० १७१८ में उ० । ऐज़न् ॥ १०६ सफ़ा ॥ - 4
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