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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४४१

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शिवसिंहसरोज

बनाये हुए ग्रंथों से प्रकट होता है । अंत में हरिवंश मिश्र कवि बिलग्रामी से भाषा-काव्य पढ़कर सुन्दर कविता की है ॥ ११६ सफा ।।४४ जमालुद्दीन पिहानीवाले, सं० १६२५ मे उ०। अच्छे कवि थे ।। ४५ जगनेश कवि ।ऐछन् ।। ४६ जोध कवि, सु० १५९० में उ० । अकबर बादशाह के यहाँ थे ॥ ३७ जगन्नाथ ।ऐजन् ।। ४८ जगमग ।ऐज़न् ॥ ४६ जुगलदास कवि।पद बनाये हैं ।। ५० जगजीवनदालचंदेलकोटवा,जिलेबाराबंकी,सै० १८४१ में उ०। यह महाराज बड़े महात्मा सत्यनामी पंथ के चलानेवाले थे । भाषा-काव्य भी किया है और आज तक जलालीदास इत्यादि जो महात्मा इनकी गद्दी पर बैठे हैं, सब काव्य करते हैं। परंतु बहुधा शांतरस की ही इन की कविता है । दूलमदास, देवीदास इत्यादि सब इसी घराने के शिष्य हैं, जिनके पद बहुत सुनने में आते हैं ।। ५१ जुल्फकार कवि, सं० १७८२ में उ० । इन्होंने विहारीसतसई का तिलक बहुत विचित्र बनाया है ।। ५२ जगनिक बंदीजन महोबा, बुंदेलखंड,सं० ११२४ में उ०। यह कवि चंद कवीशवर के समय में थे । जैसे चंद का पद पृथ्वीराज चौहान के यहाँ था, वैसे परिमाल महोबेवाले चंदेल