पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३०‌
शिवसिंहसरोज

७ तारा कवि, सं० १८३६ में उ०। सुन्दर कविता की है ॥ १२४ सफ़ा ॥ ८ तववेता कवि, सं० १६८० में उ० । हजारा में इनके कवित्त हैं ॥ १२५ ॥‌ ६ तेगपाणि कवि, सं० १७०८ में उ०। ऐछन् ॥ १२५ सफ़ा ॥ १० ताज कवि, सं० १६५२ में उ०। ऐज़न् ॥१२९ सफ़ा॥ (१) ११ तालिबशाह, सं० १७६८ में उ० । कवित्त अच्छे हैं ॥ १२६ सफ़ा ॥ १२ तीर्थराज ब्राह्मण बैसवारे के, सं० १८०० में उ०। यह महाराज महान् कवीश्वर वैसगंशावतंस राजा आंचलासिंह बैंस रनजीतपुरवावाले के यहाँ थे, और उन्हीं की आज्ञानुसरा संवत् १८०७ में समरसार भाषा किया ॥ १२८ सफ़ा ॥ १३ तीखी कवि। ऐज़न् ॥ १२८ सफ़ा ॥ १४ तेही कवि । ऐज़न् ॥ १२८ सफ़ा ॥ १५ तोख कवि, सं० १७०५ में उ० । यह महाराज भाषाकाव्य के आचार्यों में हैं । ग्रन्थ इनका कोई हमको नहीं मिलता ॥ पर इनके कविता से हमारा कुतुबखाना भरा हुआ है । कालिदास तथा तुलसीजी ने भी इनकी कविता अपने ग्रंथों में बहुत सी लिखी है ॥ १२५ सफ़ा॥ १६ तोखनिधि ब्राह्मण कंपिलानगरवासी, सं० १७६८ में उ० । इनके बनाये हुए तीन ग्रंथ हैं-सुधानिधि ११ व्यंग्यशतक २, नखशिख ३, ये तीनों ग्रंथ विचित्र हैं ॥ १२७ सफ़ा ॥