पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३०
शिवसिंहसरोज

शिवसिंदेसरोज दोदा तिसिंह जिमि धरनिथुव, जाते आरि भय मीत । जाहिर भयो जहान में, ताको जोगाजीत ॥ १ ॥ जोगाजीत गुनीन को, दीन्हें बहुविधि दान । कालिदास ताते कियो, ग्रंथ पंथ अनुमान ॥ २ ॥ चौपाई । सस्प त सत्रह से उनचास : कालिदास किय ग्रंथ विलास ॥ क्तिसिंहदन उद्दाम 1 जोगाजीत नृपति के नाम 1१॥ ६१. कबीन्द्र उदय यनाथ कवि । श्री कालिदास कधि के पुत्र वनपुरनिवासी छाड़ा रैन आड़ा है अमीर आमखास बीच वोला वेतुत्रान । बात जन बर की । जौ जुद्ध विरचि कटारी निरधारी भारी भनत कबिंद कारी कला ज्यों कहर की ॥ पंजर समेत मंज मंजर लाँ पैठि आप अरि के उमेटि आनी पीढि जाय फरकी । बाँह की बड़ईि के बड़ई वांहिचे की करी कर की बड़ाई के बड़ाई जमधर की ॥ १ ॥ रमनरिंद गजसिंह के चढ़े दल लंक ले आतंक वक़ संक सरसाती है । भनत कबिंद वा दुदुभी धुकार भारी बरा धस मसे गिरिपाँती डगलती है ॥ कमठ की पीठ पर सेस के सहस न दीधा ल दवात उमगात अधिकाती है । फनन ते बाहिर निरारि है हजार जीमैं स्याह स्याह वाती सी बुझाती रहि जाती है ॥ २ ॥ गहिरी गुराई सी प्रथम चूमि चामीऔर चम्प के उपर बहुरि पॉव प्यो है । तीसरे असल अरबिंद आभा बस करि सि करि तड़िता को तोथैद में तोप्यो है ॥ भनत कबिंद तेरे मान समै सौते कहां पुरवनितान को गुमान जात लोप्ो है। मेरे जन आाली आज ऐंड़भरो तेरो मुख भौहैं तानि सहें री कलाँनिधि कोयो है ) ३ ॥ पौन के झकोरन कव क्षेहरान १ चलने की। २ डगमगाती । ३ सोना ।४ बदल । ५ चन्द्रमा ।