पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/५४

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शिवसिंहसरोज

कुंज है न कुंजलाल कुंज में न कुंजलाल कुंज टू सर्ण स्याम है । । बाप को न काम इतें वाम को न काम कितं वाम को न काम जित वाम हू सर्रा काम है ॥ १ ॥

६६• कुंदन कवि

सपनेहु सोन तोहेिं दो निरदई दई विलपति रहाँ जैसे जल घिन झखियाँ । कुंदन सैंदेसो आयो लाल मधुसूदन को संदे मिलि दौरॉ लेन अंगन हखियाँ ॥ के समाचार न मुखागर संदेसो कटु कागद लै करो हाथ दीन्ह झाथ सखियाँ । छतियाँ सों पतियाँ मिलाइ वैवीं वाँचिचे को जौलीं खोलीं खम तौल खुलि गई औखियाँ ॥ १ ॥

७०. कमलेश कवि

आाजु वरसाइति वर साइति करिये तो ताते तिय हित पाइ तोहैिं बार बार बुझिये । कहे कमलेस याँ महेस को तिहारो पन ताते छन भरे को री एकसंग दूजिये ॥ मैन के उमंग मैनज्जू की मनभावन सों झि मनभावन स फेरि आनि जूझिये । पीपर के पास ते परोसिनि म पास आाव आछे वर िफेरि पीपर को पूजिये । १॥ रंभा से रसिक नीके चंचल तुरंगम से मुख से सपेद चारु चंद से गनाइये । कहै कमलेस कामधेनु से सखीन चित्त सौतिनको चिंता मनि चाप से गनाइये ॥ पय को पियूष श्री सुरतरु धनंतर से का विष मद से मतयारे से गाइये । रूपनिधि मथि मनमथ ने निकासे जे रतन दस चारि मियानैनन में पाइये 1२५ पुरत करत विधि प्यारी विपरीत रची गदन महीप को रिझाषत हैं साँसे से । है कमलेस हैं कलान में प्रवीन फेरि अंगअंगवालाँ विचारि गाँस गाँसे से ॥ आंख तहीं कंकन लॉ वन चलाई दवे नूपुर दबाइ मानौ चुगुलनि ठासे से 1 ज्यों-ज्यों कटि लवें मवें १ लिफ़ाफ़ा ।२ शीन । में