पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/५५

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शिवसिंहसरोज

शिवासिंहसरोज • कन उलाहनो त्याँ नथ में दो मोती करै नखें लीं तमासे से ॥ ३ ॥ कवि कमलस हैं आंधीन गुन राजन के राजन को छिति के अधीन लेखियह है । छिति के अधीन धान धान के अधीन प्रान प्रान के प्रधान देह सोई पेखिय है ॥ देह के आधीन नेह नेह के अधीन गेह गेट के अधीन नारि सो विसेपियतु है । नारि के अधीन भाव भाव के अधीन भक्ति भक्ति के अधीन कृष्ण चंद्र देखिय है ।|।॥ मिलिये उड़ि के किमि पंख नहीं तखिये किमि नादि कला ससिकी। हरि के श्रुति से श्रुति जो लहते सुनते हैंसि बोलनि वा मुख़ की ॥ मुख सेल डू से लहते कहते कमलेस कथा गुन औ जस की । मिलिवौ विड विलुरॉबौ मिनौ अपने बस ना विधनावस की।॥ ५ ॥ ७१. क्राम्ह कवि कन्हईलाल कायस्थ राजनगर बुंदेलखण्ड (१) सोने के सबून व्रजराजमनमंदिर के रचिचे को चारु चतुरानन कहाँ के हैं । कैध रसराज महाराज के निसान खंभ काम्ह कहै कैधों सौतिमानभंज नाके हैं ॥ कौन उपमा के प्रति राजें सुखम के ग - जगवनविथा के राजहंसगति नाके हैं । मोहन बना के मन मोहिने के नाके खंभ कामपलना के किधर्मी पग ललना के हैं ॥१ ॥ कैधों म रजाद घिधिना की विधि ताके सखीं गहब गुलाव आष राखे प्रेम गोरी के । कैधों मनि मानिक ललाई यघरेखियतु मानो युति मु कुर सुहाये काम जोरी के ॥ कान्ह भमैं पद जुग सागर कुसुम रंग तामें दसकमल परागनि झकोरी के नवलकिशोर के नवल स नेहभरे नष नख एजें खरे नवलकिशोरी के ॥ २ ॥ ७२, कान्ह प्राचीन कवि (२) कानन तौं कॅखियाँ ये तिहारी हथेरी हमारी कहाँ लरीि फैलि हैं। १ खंभे ।२ आईना ।