पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६१

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शिवसिंहसरोज

विष्य निमेष विष बाधा के ॥ कृष्णसिंह कामकला विविध कटाच्छ ध्यान थारना समाधि सनमथासद्धि साधा के प्रेम के प्रयोगी सुख संपतिॐयोगी प्रति श्याम के वियोगी भये योगी नैन राधा के ॥ १ ॥ ८८, कविदत्त कांच भले । हीरन के मुक्तान के भूपन अंगन ल घनसार लगाये। सारी सफेद लगे जरतारी की सारवरूप सो रूप सोहाये ॥ पीतम ५ ली यों कवि दस सहय है चाँदनी याहि छपाये । चाँदनी को यदि चंद्रमुखी मुख चंद की चाँदनी साँ सरसाये५१। ८६. कालिका कवि । यह प्रीति की वेलित लगाई जु है तिदि सींधि भले सरसाइये जू। नित साँझ -सफरे कृपा करि* पगधारि सुधा वरसाइये जू ॥ कवि कालिका याँ कर जोरि कहै मंति देखने को तरसाइये । इन गाँखें हमारी कुमो दिी को मुखइन्दु लला दरसाइये जू १। ६०. कविराम कवि-( नाम रामनाथ ) यह ऐसो अदाँघ भयो या घरी घरहाइन के परी सृजन में । मिस कोऊ न आाय चढ़े चित पै इनकी बतियान की गुंजन में। कवि राम कहै भई ऐसी दसा निरिलंघन की जिमि सृजन में । किमि हाँ अब जायसकों हे दई बजी वैरिनिवाँसुरी कुंजन में १॥ है१. केवलराम कवि पद-सरस रसरंग भीने नवल हरि रसिकवर प्रांत ही जात इतरात सोहै । परम भीति के ऐनहित हुलास जागे रैन चैन चित निरख़ि ख़ुति वैन मोहै ॥ मंद मृदुल हँसनि छवि लसनि मुखमरी ललित कच कुटिल डग ब्रेक गेंहै । मदनगोपाल अवलोकि धीरज घरे है री सजनि ऐसी बाल को है ॥ चाकित चिंतवत चित करत १ बढ़ाए। २ सुबह । ३.कोकावेली। ४ बहाना।