पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६६

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज ४७ मदादि तम करै खएड नीको है । ॥ व्यास सनकादि वेदविदित विरंचि हरि संड से विवेकी जाछ करें वंदनीको है । कामताप्रसाद कला सोरहों ग्रखंड मुख चंद हू ते नीको वृषभाननंदनी को है ॥ २ ॥ १०३. कामताप्रसाद (२ ) कान्यकुब्ज ब्राह्मण लखपुरा ज़िले फ़तेपुर बाले ( संस्कृत, प्राकृतभाषा, फ़ारसी ) या नलिन मलिन नयनेन आनेन करोति विभर्तीि करा । चंदपुखी महतिज्ञ गई पुनि तिक्ष कणनि विजहरा ॥ कीरति वाकी वरोवरि को करि ऐसे नये पिय कौन धरा । गारद बुर्वेदिल हमदोश -जब शुद मस्तम कुश्तपरा ॥ १ ॥ १०४ कवीर कवि एक दो होइ तो मैं समझाऊँ जग से कहा बसाइ । समुझि कबीर रहै घट भीतर को वाकि पलाइ 1१॥ पारस साढ़े तीनि हैं, दीपक भंट्टी साध । आधो पारस पारखी, कहत कवीर विसाथ ५२ ॥ पथी. भीतर अगिनि है, बाँटे पीसे कोइ । लाख जतन करि काढ़वी, यानि न परगट होइ ॥ ३ ॥ है है तौ सब कॉउ कहै, नाहीं कहै न कोइ । कघिरा ऐसा ना मिला, यह बैठा है सोइ ॥ ४ ॥ है उ कहाँ तौ नादि है, नाहीं कहीं तो है । है नाहीं के बीच में, जो कुछ है सो है ॥ ५ ॥ लखतलखत जब लखि रहै, छकत छकत छकि जाइ । ब्रह्म टवे - आपने, थार्नंद उर न समाइ ॥ ६ ॥ १ यह एक कीड़ा होता है, जो एक दूसरे कीड़े को पकड़ कर अपने घर ले जाता है । दूसरा कोडा इसके आगे कुछ देर तक रद्द कर भयकी तन्मयता से तड्रप हो जाता है।