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शिवसिंहसरोज


कोऊ जानिये । दंड है जतीन के कुरंगे ही के वनवास मोरन की अँखियाँ सु नीके करि मानिये ॥ नाहीं एक नवलतियान मुख देखियत हाहा एक सुरतसमै ही अनुमानिये । पूछि देखे जाहि ताहि प्रेमपुंज चाहि चाहि एते खान रानाजू को राज पहिचानिये।१॥

१९६. खेम कवि (२)

भूपन सेत महा छवि सुन्दर सनि सुवास रची सब सोनै । गोरे से अंग गरूर भरी कवि खेम कहै जो गई तहूँ गोनै ॥ चंदमुखी कटेि खीन खरी दृग मीनहु ते अति चंचल दोनै । ऐसी जो आइ कै अंक लगै तो कलंक लगो अरु होउ सो होनै।१ ॥

११७. गंगकवि
छप्प्पै

दलहि चलत हलहलत भूमि थलथल जिमि चलदल । पलपल खल खलभलत विकल वाला कर कुल कल ॥ जब परैवनि जुछ खंड धुत्र बुद्धव हुछ । अरर अरर फटि दरकि गिरत धसमसति धुकन ध्रुव ॥ भनि गंग प्रवल महि चलत दल जँहगीरसाह तुव भारतल । फ़ुफ़ु फनिंद फन फ़ेकरत सहस गाल उगिलत गरल ॥ १ ॥ कवित्त । मालती सकुंतला सी को है कामकंदला सी हाजिर हजार चारु नटी नौल नागरें । ऐलफ़ैल फिरत खवास खास आसपास चोवन की चहल गुलाबन की नागरे। ऐसी मजिलिसि तेरी देखी राजा वीरवर गंग कहै गूँगी हैकै रही है गिरा गरै । महि रह्यो मागधनि गीत रखो ग्वालियर गोरा रह्यो गोर ना अगर रह्यो आगरें । २ । दोहा ― गंग गोछ मोछा जमुन, गिरा अथर अनुराग । खानखानखानान के, कामद बदन प्रयाग ॥ ३ ॥ १ मुग । २पीपल । ३ डंके की आवाज़। ४ विष । ५ वाणी ।६ गलेमें।