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शिवसिंहसरोज


वेसुमार जह सघन तमाल है ॥ सुकवि गोपाल तहाँ खरीन सतायो प्लानि नहगहे नैन डारै अँसुवा विहाल हैं । मोर खैचै वेनी सीस– फूलन चोकर खैचै मुफ्फन की माल गढ़े खैचै मराल है ॥ १ ॥

१२८ गुमानजी मिश्र साँढ़े के नवासी ( १ )
( काव्यकलानिधि की भाषा नैपध )

दोहा-संयुत मछप्ति पुरान तै, सम्बन् सर निरदरम्भ ।
मुरगुरुसह तित सप्तमी, करयो ग्रंथ आरम्भ ॥ १ ॥

छप्पै

गान सरस अलि करत परस मुद मोद रंग रचि । उथत ताल रसाल करन चल चाल चोप सचि । ॥ चिन्दमनिमय जटित हेम भूपन गन व मत । चलत लोल गति मृदुल अंग नव तांडव सज्जत ॥ लखि प्रननि समय मुख तात को बिहसी मानु लिय लाय उर। जय जय मतंगशनन अगल जय जय जय तिहुँलोकगुर ॥ १ ॥ कवित्त । धरधर हालै धराथर धकारन सो धीर न धरन जे औरैया बलवाह के । फूटत पताल ताल सागर सुखत सात जात है उड़ात योमें विहंग बलाह के ॥ झालरि रुफत झलकत झषी फीलनि दें अली अकरम के सुभट सराह के । अरिउर रोर सोर परत संसार घोर बाजत नगारे हैं बरौरनरनाह के ॥ १ ॥

छप्पै

धर्मधुरंधर धीर बीर कलिकालविहंडन ।
तपत तेज वरिवंड साधुगनमंडल–मंडन ।॥
पुन्यस्लोक पवित्र चित्रमति मित्रमोहतम ।
रूपमनोहर राति वेद प्रकासीत हरिसम ॥


१ पपियों ने । २ चंचल । ३ गजानन गणेश । ४ आकाश ।