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शिवसिंहसरोज


नृपवीर सेन नदन नवल सोमवंस सत्र शुन सच्यो।
छिति भाग प्रजा के पुन्यफल नल राजा करता रच्यो ॥ ॥

संगर धरावै जांके रंग सो सर्दी सुभट निज चातुरी तुरी सौ जस– पटनि वुनतु है । करि करि वालवेस कोरि कोरि जोरिजोरि चंद ते विसद जाके गुननि गुनतु है ॥ अमल अमोल ओल डोल झल- झल होत कवहुँ घटै न जन देवता सुनतु है । आठौ दिसि रानी राजधानी के सिंगारिवे को आठे दिगराज जानि चीरनी

चुनतु है ॥ ३ ॥

तोटक

कवितानि सुमेरुन बाँटि दियो ।
जलदानन सिंधुन सोकि लियो ।
दुहुँओर बँधी जुलफ़ै सुभली ।
तृप मानत औ जस की अवली॥ ४ ॥

आंसवसार सुधाधर मंडल है मद कोमल व छवि छाय । देववधू तिहि पीवत छीव छकै सब जीव करै चितु लायो । छूटत सौरभ सोभसने तिहि लोपत तारन बीच बसायो । प्यालो लग्यो मनि नीलम को उर अंक कलंक न रंक बतायो ।।

१२६. गोविन्द कवि
(कभरण)

दोहा-लहत मोद मकरंद ज, मुनिमन मिलित मिलिंद ।
बाही मूरति मंजु के, वंदौं पद अरविंद ॥ १ ॥
कीन्हो सुकवि गुविंदजु ,कर्नाभरन विचारि ।
साँचो कर्नाभरन कवि, करहैिं कृपा उर धारि ॥ २ ॥
(७) (ई) (७) (१) .
नग निधि ऋषि विधु वरस मैं, सावन सित तिथि संधु ।
कीन्हो सुकवि गुविंदजु, कर्नाभरन . अरंभु ॥ ३ ॥


१ श्रेष्ठ अमृत । २ अप्सरा । ३ भ्रमर । ४ चौदस ।